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अपभ्रंश साहित्य में पार्श्वनाथ
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नक्षत्र में भ. पार्श्वनाथ को केवल ज्ञान प्राप्त होने २९, संवरदेव द्वारा क्षमा मांगने आदि का वर्णन किया गया है। शेष संधियों में पार्श्वनाथ के विहार, उपदेश, पूर्व भवान्तरो, सम्मेद शिखर पर श्रावण शुक्ला सप्तमी को निर्वाण होने का विवेचन उपलब्ध है । ३१
८. कवि असवाल कृत पासणाहचरिउ
डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने ऊहापोह द्वारा इनका समय वि. की १५वीं शताब्दी सुनिश्चित किया है । गोलाराड वंश में लक्ष्मण के पुत्र के रूप में उत्पन्न बुध असवाल ने लोणासाहु के अनुरोध से अपने ज्येष्ठ भाई सोणिक के लिए अपभ्रंश भाषा में भ. पार्श्वनाथ के विगत और वर्तमान भव संबंधी घटनाओं को काव्य के रूप में निबद्ध किया था । १२ बुध असवाल ने अपने 'पासणाहचरिउ' को १३ संधियों में विभक्त किया है। इसकी कथावस्तु परम्परागत है। यह ग्रन्थ अद्यतन अप्रकाशित है । डॉ. देवेन्द्र कुमार शास्त्री के उल्लेखानुसार इस ग्रंथ की १५० पत्रों वाली अपूर्ण पाण्डुलिपि की एक प्रति श्री अग्रवाल दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर, मोती कटरा, आगरा में विद्यमान है । ३३
९. तेजपाल कृत पासपुराण
वि.सं. १५०६ से सं. १५९६ के मध्य जन्म लेने वाले और ताल्हडम साहु के पुत्र कवि तेजपाल ने संभवणाह चरिउ और वरंग चरिउ के अलावा पासणाह पुराण की रचना की थी । ३४ यह एक खण्डकाव्य है, जिसकी रचना पद्धड़िया छन्द में हुई है । डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने इस संबंध में विशेष परिचय दिया है। यह ग्रंथ आजतक अप्रकाशित है । डॉ. देवेन्द्र कुमार शास्त्री के अनुसार इसकी एक प्रति आमेर शास्त्र भंडार, जयपुर और एक प्रति बड़े धड़े का दिगम्बर जैन मंदिर, अजमेर में सुरक्षित है । ३५
१०. पासजिण जंमकलसु
इसके रचयिता अज्ञात हैं। इस अप्रकाशित ग्रन्थ की ३५० - ३५१ पत्र वाली पांडुलिपि खेतरवसी भण्डार, पाटन में उपलब्ध है । २६