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________________ १५२ तीर्थंकर पार्श्वनाथ . ११.पार्श्वनाथ भवान्तर जयकीर्ति द्वारा प्रणीत यह ग्रन्थ अनुपलब्ध है।३७ १२.सागरदत्त सूरि कृत पासपुराण ___ सागरदत्त सूरि के पासणाह ग्रंथ का उल्लेख डॉ. देवेन्द्र कु. शास्त्री ने किया है। न तो यह रचना उपलब्ध है और न रचनाकार के संबंध में कोई जानकारी प्राप्त है। उपलब्ध पासणाहचरिउ के आधार पर उन महत्वपूर्ण घटनाओं का विवेचन करना आवश्यक है जो उन्हें एक ऐतिहासिक महापुरुष सिद्ध करती हैं। भगवान पार्श्वनाथ और कमठ के पूर्व भव भगवान् पार्श्वनाथ और कमठ के दस भवों का वर्णन पुष्पदन्त, पद्मकीर्ति और रइधु ने विस्तार से किया है। उनके पूर्व भवों में उनके नामों के संबंध में उनमें मतवैषम्य भी है। पहले भव में पार्श्वनाथ के जीव को विश्वभूति और कमठ के जीव. को कमठ कह कर अपभ्रंश के उक्त महाकवियों ने उत्तरपुराण का अनुकरण किया है। दूसरे भव में पार्श्वनाथ के जीव को पुष्पदन्त ने वज्रघोष हस्ति, आ. पद्मकीर्ति ने अशनिघोष हस्ति तथा रइधु ने पविघोष करि और इस भव में कमठ के जीव को एक स्वर से उन्होंने कुक्कुट सर्प होने का उल्लेख किया है। तीसरे भव में पार्श्वनाथ के जीव को एक सहस्रार कल्प का देव और कमठ को धूमप्रभ नरक का जीव लिख कर आचार्य गुणभद्र का पुष्पदन्त आदि ने अनुकरण किया। केवल पदमकीर्ति ने कमठ के जीव को नरक गया लिखा है, नरक का नाम नहीं दिया। चौथे भव में भगवान् पार्श्वनाथ के जीव को पुष्पदन्त ने विद्युतवेग और तडिन्माला का पुत्र रश्मिवेग, पद्मकीर्ति ने विद्युतगति और मदनावली का पुत्र किरणवेग एवं रइधु ने अशनिगति और तडितवेग का पुत्र
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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