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तीर्थंकर पार्श्वनाथ का लोकव्यापी प्रभाव
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प्रो. जगदीश गुप्त ने अनेक तथ्यों को निरूपित करते हुए लिखा है 'तीर्थंकर पार्श्वनाथ की महत्ता नागपूजा, यक्ष पूजा और सूर्यपूजा से समर्थित है। इससे यह सिद्ध होता है कि भारतीय संस्कृति में उनकी कितनी लोकप्रियता रही है और कितने रूपों में उन्हें चित्रित एवं उत्कीर्ण किया गया है । भारतीय कलाकारों ने कितनी तन्मयता से उनके स्वरूप को अपनी कल्पना से समृद्ध किया है। नाग छत्र के भी कितने रूप मिलते हैं यह पार्श्वनाथ जी की असंख्य प्रतिमाओं के अनुशीलन से पहचाना जा सकता है। मेरी दृष्टि में भारतीय संस्कृति के स्वरूप को समझने के लिए महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध के बाद यदि कोई जैन तीर्थंकर कलात्मक दृष्टि से महत्वपूर्ण है तो पार्श्वनाथ ही हैं । १७
तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ के उपदेशों की यह विशेषता रही है कि उन्होंने इनको सार्वजनिक बनाने का प्रयत्न किया। किसी का विरोध करने के लिए ही भगवान् पार्श्व ने चातुर्याम धर्म की स्थापना नहीं की थी अपितु मनुष्य के बीच शत्रुता नष्ट होकर समाज में सुख शांति रहे यही उनका उद्देश्य था। उनके द्वारा प्रतिपादित धर्म व्यापकता लिए हुए था इसी कारण आज़ भी वे जन-जन की आस्था के केन्द्र बने हुए हैं । भारतीय संस्कृति में उनका लोकोत्तर प्रभाव है। परिणामस्वरूप आज अनेक स्थानों पर उनकी मूर्तियां उपलब्ध हैं । आज आवश्यकता इस बात की है कि जहां पार्श्वनाथ की उपासना करने वाली जातियां विद्यमान हैं उनका सर्वेक्षण कराकर मूलधारा के साथ जोड़ने हेतु योजनायें बनाकर संरक्षण प्रदान किया जाए ।
संदर्भ
१.
"That Parsva was a historical person, is now admitted by all as very probable........."
The Sacred Books of the East, Vol. XLV: Introduction page
21.