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________________ - १०६ तीर्थकर पार्श्वनाथ भी ज्ञात होता है कि जैन धर्म पूर्व भारत में एक सुगठित समुदाय के रूप में रहा है जिसके संरक्षक शराक वंशीय मुखिया होते थे।" . शराक जाति के लोग बंगाल के अतिरिक्त बिहार एवं उड़ीसा में बहुत बड़ी संख्या में पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त मेदिनीपुर जिले के सद्गोपों, उड़ीसा की 'रंगिया' जाति के लोगों, अलक बाबा आदि के जीवन व्यवहार के देखने से उन पर भगवान् पार्श्वनाथ के धर्म का अमिट प्रभाव परिलक्षित होता है। यद्यपि भगवान् पार्श्वनाथ को लगभग तीन हजार वर्ष व्यतीत हो चुके हैं फिर भी उनकी भक्ति का प्रकाश ये लोग आज तक अपने हृदय में संजोए रखे हैं। इन जातियों के अतिरिक्त श्री सम्मेद शिखर के निकट रहने वाली भील जाति भी श्री पार्श्वनाथ की अनन्य भक्त है। इस जाति के लोग मकर सक्रान्ति के दिन श्री सम्मेद शिखरं की सभी टोकों की वन्दना करते हैं और श्री पार्श्वनाथ टोंक पर एकत्रित होकर उत्सव मनाते हैं तथा गीत एवं नृत्य का कार्यक्रम करते हैं।१५. भारतवर्ष की सभी प्रमुख भाषाओं जैसे संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश आदि में तीर्थंकर पार्श्वनाथ के ऊपर लिखे गए अनेक काव्य उपलब्ध हैं जिन का उल्लेख डॉ जयकुमार जैन ने अपने महत्वपूर्ण शोधप्रबन्ध 'पार्श्वनाथ चरित का समीक्षात्मक अध्ययन' में किया है जैसे जिनसेन प्रणीत पार्वाभ्युदय, वादिराज सूरीकृत पार्श्वनाथचरित, पद्मकीर्ति का पासणाहचरिउ, देवदत्तकृत पासणाहचरिउ, विवुध श्रीधरकृत पासणाहचरिउ आदि ।१६. . तीर्थकर पार्श्वनाथ की भक्ति में अनेक स्तोत्र का आचार्यों ने सृजन किया है जैसे श्रीपुर पार्श्वनाथ स्तोत्र, कल्याण मन्दिर स्तोत्र, इन्द्रनन्दि कृत पार्श्वनाथस्तोत्र, राजसेनकृत पार्श्वनाथाष्टक, पद्मप्रभमलधारीदेव कृत पार्श्वनाथस्तोत्र, विद्यानन्दिकृत पार्श्वनाथ स्तोत्र, आदि। स्तोत्र रचना आराध्य देव के प्रति बहुमान प्रदर्शन एवं आराध्य के अतिशय का प्रतिफल है। अत: इन स्तोत्रों की बहुलता भी भ. पार्श्वनाथ के अतिशय प्रभावकता का सूचक है।
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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