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________________ तीर्थकर पार्श्वनाथ का लोकव्यापी प्रभाव विभाजित वैशाली और विदेह के शक्तिशाली वज्जिगण में तो पार्श्व का धर्म ही लोकप्रिय धर्म था। कलिंग के शक्तिशाली राजा 'करकंडु' जो कि एक ऐतिहासिक नरेश थे, तीर्थंकर पार्श्वनाथ के ही तीर्थ में उत्पन्न हुए थे और उनके उपासक उस युग के आदर्श नरेश थे। राजपाट का त्याग कर जैन मुनि के रूप में उन्होंने तपस्या की और सद्गति प्राप्त की, ऐसा उल्लेख है। इसके अतिरिक्त पांचाल नरेश दुर्मुख या द्विमुख, विदर्भ नरेश भीम और गान्धार नरेश नागजित या नागाति तीर्थंकर पार्श्व के समसामयिक नरेश थे।१२ . ... भगवान् पार्श्वनाथ के लोकव्यापी प्रभाव का मूल कारण था कि उन्होंने सर्वाधिक स्थानों पर विहार किया। भगवान् पार्श्वनाथ का विहार जिन देशों में हुआ था उन देशों में अंग, बंग, कलिंग, मगध, काशी, कौशल, अवन्ति, कुरू, पाण्डु, मालव, पांचाल, विदर्भ, दशार्ण, सौराष्ट्र, कर्नाटक, कोंकण, साट, कच्छ, कश्मीर, सोण, पल्लव और आभीर देश थे। ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं कि वे तिब्बत में पधारे थे। भगवान् ने जिन देशों में विहार किया था वहां सर्वसाधारण पर उनका व्यापक प्रभाव पड़ा और वे उनके भक्त बन गए।१३ - बंगाल राज्य में प्राप्त जैन अवशेषों के परिधि क्षेत्र के अन्तर्गत निवास ‘करने वाली जातियों का विश्लेषण करते हुए श्री सरसी कुमार सरस्वती ने अपना मत इस प्रकार प्रस्तुत किया है: बंगाल में जैन अवशेष उन स्थानों से प्राप्त हुए हैं. जहां कभी जैन मन्दिर या संस्थान रहे थे। यह उल्लेखनीय है कि यह क्षेत्र बहुत लम्बे समय से उन लोगों का निवास स्थान रहा है जिन्हें शराक' नाम से जाना जाता है। ये लोग कृषि पर निर्भर रहते हैं तथा कट्टर रूप से अहिंसावादी हैं। रिसले ने अपनी पुस्तक 'ट्राइब्स एण्ड कास्ट्स ऑफ बंगाल' में बताया है कि लोहरडागा के शराक आज भी पार्श्वनाथ को अपना एक विशेष देवता मानते हैं तथा यह भी मान्य है कि इस जनजाति का 'शराक' नाम श्रावक से बना है, जिसका अर्थ जैन धर्म के अनुयायी गृहस्थ से है। ये समस्त साक्ष्य संकेतित करते हैं कि शराक मूलत: श्रावक थे, इस बात का समर्थन उनकी परम्परा भी करती है। इस सर्वेक्षण से यह
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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