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- - तीर्थंकर पार्श्वनाथ गौतम गणधर के साथ विचार विमर्श हुआ और इसके पश्चात् उन मतभेदों का परित्याग कर दिया जो इन अनुयायियों के मन में थे।१६। ___एक अनुश्रुति के अनुसार बौद्ध धर्म के मूल प्रवर्तक बुद्ध कीर्ति तथा उनके साथी सारिपुत्र एवं मौद्गलायन आदि प्रारंभ में पार्श्व की परम्परा के ही साधु थे, ये बुद्धकीर्ति स्वयं गौतम बुद्ध थे अथवा उनके जैन गुरू यह कहना कठिन है, किन्तु स्वयं “मज्झिमनिकाय" आदि प्राचीन बौद्ध ग्रन्थों से पता चलता है कि कुछ दिन गौतम बुद्ध पार्श्व की आम्नाय के एक जैन साधु के भी शिष्य रहे एवं उन्होंने जैनाचार एवं तपश्चरण का अभ्यास किया
था।
_ "ब्रह्मचर्य का पालन करो, संग्रह परिपाटी को खत्म करो, उतना ही संग्रह करो जितने की तुम्हें आवश्यकता है। जहां पीड़न और शोषण है, वहां धर्म नहीं अधर्म है। संग्रह एक भयंकर अनर्थ है, इस प्रकार तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने अनेक सूत्र व शिक्षाएं दी। पार्श्वनाथ की यह धर्म घोषणा उपस्थित प्राणियों के लिये आकर्षक बनी। इस प्रकार भगवान् पार्श्वनाथ को समस्त साहित्य में एक ऐतिहासिक पुरुष के रूप में पहचाना जाता है।
संदर्भ १. डॉ. ज्योति प्रसाद जैन, भारतीय इतिहास एक दृष्टि, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन,
१९६५-६६, पृष्ठ २३. . २. तिलोयपण्णत्ती, चउत्थो महाधियारी, गाथा पृष्ठ ५. ३. डॉ. ज्योति प्रसाद जैन, भारतीय इतिहास एक दृष्टि, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन,
१९६५-६६, पृष्ठ ३४. ४. वही पृष्ठ ३८. ५. वही पृष्ठ ४५. ६. वही पृष्ठ ४६. ७. वही पृष्ठ ४६. ८. भगवान् पार्श्वनाथ समर्पित जीवन, पृष्ठ १८.