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________________ तीर्थकर पार्श्वनाथ का लोकव्यापी व्यक्तित्व और चिन्तन तीर्थंकर पार्श्वनाथ का आध्यात्मिक रूप में बहुमूल्य योगदान कहा जा सकता इस प्रकार तीर्थंकर पार्श्वनाथ का ऐसा लोक व्यापी प्रभावक व्यक्तित्व एवं चिन्तन था कि कोई भी एक बार इनके या इनकी परंम्परा के परिपार्श्व में आने पर उनका प्रबल अनुयायी बन जाता था। उनके असीम विराट व्यक्तित्व का विवेचन इन कुछ शब्दों या पृष्ठों में करना असम्भव है, फिर भी विभिन्न शास्त्रों के अध्ययन और सीमित शक्ति से उन्हें जो जान पाया यहां श्रद्धावश इसलिए प्रस्तुत किया है ताकि हम सभी उनके प्रभाव को जानकर उन्हें और जानने-समझने के लिए प्रयत्नशील हो सकें। संदर्भ १. (क) पापित्यानां-पार्श्वजिन शिष्याणामयं पापित्यीय : भगवती टीका १/९. (ख) पापित्यस्य-पार्श्वस्वामि शिष्यस्य अपत्यं शिष्य: पापित्यीय: सूत्र २/७. २. वेंसलिए पुरीरा सिरियासजिणे ससासणसणहो। __ हेहयकुलसंभूओ चेइगनामा निवो आसि ।। उपदेशमाला गाथा ९२. . ३. भगवई २/५, पैरा ११० पृ १०८. - ४. · पासेणं अरहयां पुरिसारांणिएणं सासए लोए बुइए अणादीय अणवदग्गे परित्ते परिवुडे .. हेट्टा विच्छिण्णे मज्झे संखित्ते, उप्पिं विसाले-भगवती २/५/२५५ पृ. २३१. • ५.. भगवती २/५/९८ पृ. १०५. ६. वही २/५/११० पृ. १०८. ७. वही २/५/११० पृ. १०९. . ८. पालि अंगुत्तर निकाय चतुस्कनिपात महावग्गो वप्पसुत्त ४-२०-५. ९.क. मज्झिमनिकाय महासिंहनाद सुत्त १/१/२, दीघनिकाय पासादिकसुत्त - ख. पार्श्वनाथ का चातुर्याम धर्म, पृ. २४. । १०.. मज्झिमनिकाय, महासिंहनाद सुत्त १/१/२, धर्मानन्द कौशाम्बी भ. बुद्ध पृ. ६८-६९. ११. सिरिपासणाहतित्थे सरयूतीरे पलासणयरत्थो। पिहियासवस्स सिस्सो महासुदो बड्ढकित्तिमुणी। ... स्तबरं धरित्ता पवट्टिय तेण एयतं ।। दर्शनसार श्लोक ६-८. १२. आगम और त्रिपिटक: एक अनुशीलन, पृ. २.
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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