________________
कहाँ हुआ कमठ का उपसर्ग
पार्श्वनाथ भगवान् प्रगट होंगे। लोलार्क ने स्वप्न की बात पर ध्यान नहीं दिया तब उनकी पत्नी ललिता से स्वप्न में एक दिव्य पुरुष ने कहा कि मैं यहीं पर रहता हूं और भगवान् पार्श्वनाथ के दर्शन करता हूं, ललिता ने कहा कि मेरे पति मूर्ति निकलवायेंगे और मंदिर बनवायेंगे। बाद में पुन: लोलार्क से स्वप्न में कहा कि भगवान् पार्श्वनाथ तीर पर आ गए हैं, तुम उन्हें निकालो, मंदिर बनवाओ, धर्म का अर्जन करो, तुम्हें लक्ष्मी, यश, पुत्रादि की वृद्धि होगी। - उक्त. संबोधन से प्रभावित होकर लोलार्क ने जब निर्देशित स्थान की खुदाई की तो वहां भामण्डल सहित अत्यंत भव्य पार्श्वनाथ की मूर्ति दिखाई दी, उसने आदर पूर्वक मूर्ति को निकाल कर वहीं जिन मंदिर बनवाकर मूर्ति प्रतिष्ठित की। वह मूर्ति जहां प्रतिष्ठित की गई उसे घेर कर चार और मंदिर भी उसने बनवाये, इसी कारण उसे पंचायतन मंदिर कहा जाता है। मंदिर का शिखर कलात्मक है उसमें कई प्रकार के अंकन हैं। पार्श्वनाथ भगवान् की मुख्य मूर्ति के साथ २४ तीर्थंकर मूर्ति भी हैं, ऊपर चौखट के मध्य में . पार्श्वनाथ की एक मूर्ति है तथा ऊपर तोरण द्वार में भी पार्श्वनाथ की तीन मूर्तियां हैं। स्तम्भों पर कमंडलु सहित मनिराजों की एवं आर्यिका मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। क्षेत्र पर शासन देवी-देवताओं, क्षेत्रपाल एवं श्रावक की मूर्ति भी है। . शिलालेख के अनुसार यहां के रेवती कुण्ड से धरणेन्द्र-पद्मावती, क्षेत्रपाल, अम्बिका आदि की मूर्तियां निकली थीं जो यहां स्थापित हैं। क्षेत्रपाल की .मूर्ति सुन्दर मानवकृति में है। शिलालेख में अंकित है कि ब्रह्मचारी लक्ष्मण को भी स्वप्न में क्षेत्रपाल ने कहा था कि मैं भी वहीं आऊंगा जहां मेरे पार्श्व प्रभु रहेंगे। - जिन लक्ष्मण के नाम का उल्लेख शिलालेख में है वे बहुश्रुतज्ञ पंडित .आशाधरजी के पिताश्री होने चाहिए ऐसा “पं. आशाधर व्यक्तित्व और कृतित्व" में पं. नेमचन्द डोणगांवकर ने लिखा है। वे लिखते हैं कि "ज़ब पं. आशाधरजी अपने पिता का नाम लक्ष्मण और जन्म स्थान मंडलगढ़ दुर्ग