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कहाँ हुआ कमठ का उपसर्ग
- श्री निर्मल जैन
नरेन्द्र फणीन्द्रं सुरेन्द्रं अधीशं, शतेन्द्रं सु पूर्जे भजै नाय शीसं । मुनीन्द्रं गणेन्द्रं नमों जोड़ि हाथं, नमों देव-देवं सदा पार्श्वनाथ ।।
भगवान् पार्श्वनाथ वर्तमान चौबीसी के सबसे अधिक पूजे जाने वाले तीर्थकर हैं। यद्यपि गुणों की अपेक्षा सभी तीर्थंकर समान होते हैं इसलिए सभी की पूजा अर्चना समान रूप से होनी चाहिए। हम भगवान् महावीर के शासन में जी रहे हैं अत: उनकी सर्वाधिक मान्यता भी उक्तिसंगत हो सकती है। परन्तु तपस्या काल में हुए उपसर्ग और उसके निवारण की देवोपुनीत घटना के कारण भगवान् पार्श्वनाथ को विघ्नहरण/संकटमोचन तीर्थकर के रूप में माना जाने लगा। फणावली सहित मूर्ति के कारण भी संभवत: उनकी मूर्तियां सर्वाधिक पाई जाती हैं।
वर्तमान में पार्श्वनाथ मूर्ति की फणावली भी विवाद का विषय बन रही है। परन्तु आचार्य समंतभद्र स्वामी ने भी अपने वृहत्स्वयंभू स्तोत्र में - ..
बृहत्फणामण्डलमण्डपेन् यं स्फुरत्तडिपिंग रूचोपसर्गिणम्।
जुगूह नामो धरणो धराधरं विरागसंध्यातडिदम्बुदों यथा।। लिखकर भगवान् पार्श्वनाथ का स्तवन किया है।
भगवान् पार्श्वनाथ का चरित्र केवल जैन पुराणों में वर्णित होकर नहीं रहा। अन्य धर्मावलम्बी विद्वानों एवं विदेशी शोधकर्ता विद्वानों ने भी उन्हें इतिहास पुरुष की मान्यता दी है। यह एक सुखद संयोग है कि हम उस मथुरा नगरी में भगवान् पार्श्वनाथ का स्मरण कर रहे हैं जिसके पुरावशेषों ने जैन धर्म की प्राचीनता एवं ऐतिहासिकता सिद्ध करने के लिए अनेक प्रमाण दिए हैं। * सतना