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________________ ५८ तीर्थकर पार्श्वनाथ तेरापुर की लयन गुफाओं में स्थित तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमाएं निश्चित ही अत्यन्त प्राचीन हैं। और उनसे पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता सुनिश्चित हो जाती है। इतना ही नहीं, ई.पू. ७७० के लगभग उपनिषदों के काल में लिखे गए हंसोपनिषद' के अध्ययन से यह बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि औपनिषदिक विचारधारा में श्रमण-संस्कृति का पूर्ण प्रभाव लक्षित हो रहा था। यही कारण है कि दिगम्बर जैन मुनि की चर्या का जैसा सुन्दर व यथार्थ वर्णन उस उपनिषद् में पाया जाता है, वैसा सम्पूर्ण वैदिक साहित्य में अन्यत्र उपलब्ध नहीं होता। अत: आज प्राच्य विद्या जगत में यह आवश्यक है कि अरिष्टनेमि और उनके पूर्व के तीर्थंकरों के सूत्र खोजकर बिखरे हुए पार्श्वनाथ के जीवन सूत्रों के साथ प्रमाणित कर वास्तविक ऐतिहासिकता सिद्ध की जाए। अपभ्रंश-साहित्य में पार्श्वनाथ विषयक अनेक रचनाएँ उपलब्ध होती .. हैं। उनमें सर्वप्राचीन पद्मकीर्ति विरचित “पार्श्वपुराण" है जिसकी रचना वि. सं. ९९९ में हुई थी। प्राकृत सहित्य में भी स्वतन्त्र रचना पार्श्वनाथ विषयक इससे प्राचीन उपलब्ध नहीं होती। श्री अभयदेव सूरि के प्रशिष्य देवभद्रसूरि ने वि. स. ११६८ में “पासणहचरिय" की रचना की थी जो गद्य-पद्य मिश्रित है। अपभ्रंश में पुराण तथा चरितकाव्य की शैली में लिखी हुई अभी तक सात रचनाएँ उपलब्ध हो सकी हैं जो कालक्रमानुसार इस प्रकार हैं - १. पार्श्वपुराण पद्मकीर्ति - १८ संधियों में निबद्ध महत्त्वपूर्ण काव्य, रचना-काल वि.सं. ९९९ । २. पार्श्वपुराण-सागरदत्त सूरि - र.का.सं. १०७६ । ३. पार्श्वपुराण-विबुह श्रीधर - १२ सन्धियों में निबद्ध, र.का.वि.सं. ११०९ । ४. पार्श्वनाथचरित्र-कवि देवचंद, १३ सन्धियों में निबद्ध, र.का. लगभग ११-१२वीं शताब्दी।
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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