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________________ तीर्थकर पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता तथा अपभ्रंश - साहित्य विषयक उल्लेख ५७ बौद्ध धर्म से प्राचीन है। तीर्थंकर महावीर के प्रमुख गणधर इन्द्रभूति गौतम • अन्य कोई नहीं गौतम बुद्ध व्यक्ति ही थे। किन्तु एच. एच. विल्सन, लास्सन, वेबर इस विचार के थे कि विभिन्न सम्प्रदाय होने पर भी जैनधर्म एक था, परन्तु बौद्ध धर्म कई शाखाओं में विभक्त था। यथार्थ में श्रमण संस्कृति के उन्नायक पार्श्वनाथ एक ऐतिहासिक महापुरुष थे - यह अनेक स्रोतों तथा प्रमाणों से सिद्ध है। । यद्यपि श्रमण संस्कृति ईसा के लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व अस्तित्व में ही नहीं थी, वरन् फल-फूल रही थी, लेकिन प्राचीनतम स्वतन्त्र अभिलेख या ग्रन्थ उपलब्ध न होने से इसकी सत्ता लिखित रूप में भले ही प्रमाणित न हो. किन्तु जीवन्त परम्परा तथा अपनी मौलिकता के कारण आज भी यह सरलता से तीर्थंकर नेमिनाथ को भी ऐतिहासिक महापुरुष सिद्ध कर सकती है। कुछ इतिहासज्ञों का यह विचार है कि पार्श्वनाथ से लगभग ११०० या १२०० वर्ष पूर्व नेमिनाथ हुए थे। यथार्थ में ऋग्वेद में वर्णित वातरशना मुनियों, बालखिल्यों और शिश्नदेवों की परम्परा “समणे मेत्ति य पढम" के रूप में साम्य भाव को प्रमुखता देने वाली श्रमण संस्कृति कहलाई। यह वैदिक चिन्तन से नितान्त भिन्न एक स्वतन्त्र विचार-परम्परा है जो बंगाल-बिहार के प्रदेशों में विस्थापित ‘सराक' जाति में आज भी जीती-जागती उपलब्ध होती है। इसकी मूल विशेषता यह है कि ईश्वर को कर्ता-धर्ता नहीं मानती। श्रमण संस्कृति के मूल तत्व हैं (१) स्वावलम्बी जीवन, (२) वीतरागता के आराधक, शरीर से भी राग रहित, (३) निर्ग्रन्थ नग्न रहकर, (४) प्रासुक आहार एक बार ग्रहण कर, (५) सभी जीवों के लिए हितकारी , (६) अतीन्द्रिय सुख उपलब्धि की पूर्णता का मार्ग प्रशस्त करने वाली। आर्यों की वैदिक संस्कृति में जहाँ मनुष्य जीवन का साध्य अभ्युदय व ऐश्वर्य-प्राप्ति रहा है, वहीं श्रमण-संस्कृति मे पूर्ण वीतरागता की उपलब्धि तथा आत्मदेव ही परम आदर्श है। ___ आज सम्पूर्ण भारतवर्ष में लगभग आठ सौ से अधिक जैन गुफाऐं उपलब्ध होती हैं। उनमें से २५० गुफाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय तथा पुरातात्त्विक महत्त्व की हैं। खण्डगिरि - उदयगिरि, उस्मानाबाद तथा
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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