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तीर्थंकर पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता तथा अपभ्रंश - साहित्य विषयक उल्लेख
- डॉ. देवेन्द्र कुमार शास्त्री इसमें कोई सन्देह नहीं है कि अथर्ववेद में वर्णित अरिष्टनेमि किंवा पार्श्वनाथ एक ऐतिहासिक महापुरुष थे। अथर्ववेद में ऋषभ, अजित और अरिष्टनेमि इन तीन तीर्थंकरों के नाम का उल्लेख है। डॉ.फुहरर ने नेमिनाथ को एक ऐतिहासिक पुरुष माना हैं। डॉ. रामजस ने भी उनको कई प्रमाणों के आधार पर ऐतिहासिक स्वीकार किया है। प्रो. ए. वेबर का स्पष्ट मत है कि अलेक्जेण्डर महान के समय जिन 'जिमनोसोफिस्ट' सन्तों का उल्लेख किया गया है वे दिगम्बर जैन साधु हैं। डॉ. प्राणनाथ विद्यालंकार ने जिस सील तथा अभिलेख का वाचन कर प्रकाशित कराया था, उसे प्रमाणित माना जाए तो यह स्वत: सिद्ध हो जाता है कि सिन्धु-सभ्यता के काल में आर्य जाति के लोग दिगम्बर जैन नग्न प्रतिमाओं का निर्माण कराके उनकी पूजा करते थे । हर्मन जेकोवी के जैन और बौद्ध साहित्य के सूक्ष्म अध्ययन से यह सिद्ध हो गया है कि भ. महावीर के पूर्व निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय का अस्तित्व था। बौद्ध ग्रन्थ 'अंगुत्तर निकाय' के चतुक्कनिपात में और उसकी अट्ठकथा में यह उल्लेख है कि गौतम बुद्ध का चाचा ‘बप्प शाक्य' निर्ग्रन्थ श्रावक था। चाउज्जाम धम्म' या चातुर्याम धर्म का उल्लेख भी बौद्ध साहित्य में मिलता है। बौद्ध धर्म में उपोसथ' (महवग्ग २,१,१) शील, व्रतादि पार्श्वनाथ-परम्परा के रहे हैं।
इस वर्तमान युग में इतिहास के क्षेत्र में शोध व गवेषणात्मक कार्यों में संलग्न योरोपियन तथा संस्कृत विद्वानों तथा इतिहासकारों में जैनधर्म की उत्पत्ति व प्राचीनता के सम्बन्ध में भ्रम रहा है। कोलबुक, प्रिन्सेप, स्टीवेन्सन, ई. थॉमस और अन्य इतिहासकार इस विचार के थे कि जैनधर्म * नीमच