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________________ ५२ तीर्थकर पार्श्वनाथ 'मल्लि:नेमि: पार्श्व इति भाविनोऽपि त्रयो जिनाः। अकृतोद्वाहसाम्राज्या: प्रव्रजिष्यान्ति मुक्तये ।। श्रीवीरश्चरमान्नीषद्भोग्येण कर्मणा। कृतोद्वाहोऽकृतराज्य:प्रव्रजिष्यति सेत्स्यति ।।" इन पंक्तियों से स्पष्ट है कि हेमचन्द्राचार्य ने पार्श्वनाथ को अकृतोद्वाह (अविवाहित) तथा महावीर को कृतोद्वाह (विवाहित) माना। किन्तु जब वे ही पार्श्वनाथ का चरित्र लिखने लगे तो उन्हें सम्प्रदाय व्यामोह जाग उठा तथा उन्होंने पार्श्वनाथ को विवाहित मानने का स्ववदतोव्याघात प्रयास किया५ । शीलांक ने जरूर चउपन्नमहापुरिसचरियं में स्पष्ट उल्लेख किया है कि प्रसेनजित् राजा ने अपनी प्रभावती नामक पुत्री पार्श्व को दी थी। पश्चाद्वर्ती श्वेताम्बर ग्रन्थकार इसी परम्परा को अपनाते रहे। . . तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने ३० वर्ष की अवस्था में दीक्षा ग्रहण की थी। तिलोयपण्णत्ति के अनुसार यह तिथि माघ शुक्ला एकादशी का पूर्वाह्न थी। उस समय भी विशाखा नक्षत्र का योग था१६ । गुणभद्रकृत उत्तरपुराण और पुष्पदन्तकृत महापुराण में भी यही दीक्षातिथि मानी गई है। श्वेताम्बर परम्परा के सुप्रसिद्ध आचार्य हेमचन्द्र ने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में तथा पद्मसुन्दर ने श्री पार्श्वनाथ चरित में पार्श्वनाथ की दीक्षातिथि पौषकृष्ण एकादशी उल्लिखित की है। सम्पूर्ण श्वेताम्बर परम्परा पार्श्वनाथ के केवलज्ञान की तिथि चैत्र कृष्ण चतुर्थी मानती है। दिगम्बर परम्परा के तिलोयपण्णत्ति में भी कहा गया है कि दीक्षा ग्रहण करने के चार माह पश्चात् चैत्र कृष्णा चतुर्थी को पूर्वाण में विशाखा नक्षत्र के योग में पार्श्व को केवलज्ञान हुआ । किन्तु गुणभद्रकृत उत्तरपुराण और पुष्पदन्तकृत महापुराण में पार्श्वनाथ भगवान् के केवलज्ञान प्राप्ति की तिथि चैत्रकृष्ण त्रयोदसी कही गई है। एक ही परम्परा में भी यह अन्तर कैसे आया? यह एक विचारणीय बिन्दु है। पार्श्वनाथ भगवान् की कुल आय १०० वर्ष थी२०. जिसमें ३० वर्ष उनका कुमार काल रहा था तथा ७० वर्ष दीक्षित काल. रहा। उनके प्रथम
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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