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________________ पार्श्वनाथ के जीवन से सम्बन्धित कतिपय तथ्य और सम्प्रदाय भेद 1 पार्श्वनाथ के विवाह के प्रसंग में परम्परागत मतवैभिन्य हैं । तिलोयपण्णत्ति के अनुसार उन्होंने कुमारकाल में ही तप को ग्रहण किया था। अर्थात् उन्होंने विवाह नहीं किया । तिलोयपण्णत्ति एवं दिगम्बर परम्परा के किसी भी ग्रन्थ में पार्श्वनाथ के विवाह का उल्लेख नहीं है । श्वेताम्बर परम्परा के प्राचीन उल्लेख भी भगवान् पार्श्वनाथ के विवाह के बाधक हैं । यद्यपि समवायांगसूत्र में पार्श्वनाथ के विवाह का प्रसंग उपस्थित ही नहीं हुआ है किन्तु वहाँ का यह कथन कि उन्होंने कुमारावस्था में दीक्षा धारण की थी, पार्श्वनाथ के बालयति होने का ही साधक हैं । आवश्यक नियुक्ति मे तो स्पष्ट उल्लेख है कि पार्श्वनाथ अविवाहित रहे थे । वहाँ कहा गया है 1 . 'वीरं अरिट्ठनेमिं पासं मल्लिं च वासुपुज्जं च । एए मुत्तूण जिणे अवसेसा आसि रायाणो ।। रायकुलेसु विजाया विसुद्धवंसेसु खत्तियकुलेसु । न य इत्थियाभिसेआ कुमारवासम्मि पव्वइया ३ ।। ५१ - उपर्युक्त उद्धारण की चतुर्थ पंक्ति में तो एकदम स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पार्श्वनाथ ने स्त्री और अभिषेक के बिना कुमारावस्था में प्रवज्या ग्रहण कीं । ज़ब श्वेताम्बर परम्परा में बाद में चलकर पार्श्वनाथ को साम्प्रदायिक भेदबुद्धि के कारण विवाहित माना जाने लगा तो मलयगिरि और हरिभद्र सूरि ने उक्त गाथाओं का अर्थ करते समय 'न य इत्थियाभिसेया' के स्थान पर 'न. यं इच्छियाभिसेया' पाठ परिवर्तित कर दिया तथा यह अर्थ किया कि उन्होंने अभिषेक की इच्छा नहीं की। उन्होंने विवाह के निषेध वाले प्रसंग को अन्यरूप करके विवाह का प्रसंग ही नहीं रहने दिया । और भी आश्चर्य तो तब होता है जब हम देखते हैं कि आवश्यकचूर्णिकार ने इन गाथाओं की व्याख्या करना ही छोड़ दिया है । इस दुविधा का प्रभाव सुप्रसिद्ध श्वेताम्बराचार्य हेमचन्द्र पर भी रहा। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में भगवान् वासुपूज्य का चरित्र लिखते समय उन्होंने मल्लि, नेमिनाथ और पार्श्वनाथ को भी अविवाहित बतलाया है। उन्होंने लिखा है
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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