SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६ तीर्थंकर पार्श्वनाथ इन दो शब्दों का उल्लेख मिलता है। यद्यपि दोनों ही शब्दों का अर्थ पार्श्व के अनुयायी हो सकता है, किन्तु हम यह देखते हैं कि जहाँ पार्श्व के अनुयायियों को सम्मानजनक रूप में प्रस्तुत करने का प्रश्न आया, वहाँ 'पासावाच्चिज्ज' शब्द का प्रयोग हुआ है और जहाँ उन्हें हीन रूप में प्रस्तुत करने का प्रसंग आया है, वहाँ उनके लिए पासत्थ शब्द का प्रयोग हुआ है। . ___ श्वेताम्बरीय जैन आगम ग्रन्थों में 'पासावच्चिज्ज' (पार्खापत्यीय) कहे जाने वाले अनेक व्यक्तियों का उल्लेख है। प्रो. दलसुख मालवणीया ने उनकी संख्या ५१० बतलायी है। उनमें से ५०३ साधु थे। टीकाकारों ने 'पासावच्चिज्ज' शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है - (क) पापित्यस्य पार्श्वस्वामि शिष्यस्य अपत्यं शिष्य : पार्श्वपत्यीय । (ख) पार्श्वजिनशिष्याणामयं पार्थापत्यीय": (ग) पार्श्वनाथ शिष्य शिष्य । (घ) चातुर्यामिक साधो । उपर्युक्त व्याख्याओं से 'पासाच्चिज्ज' शब्द के दो अर्थ निकाले जा सकते हैं। (क) पार्श्वपत्यीय भगवान पार्श्वनाथ के अनुयायी थे। (ख) वे चार यामों का पालन करते थे। आचारांग में 'समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पासाच्चिज्जा समणोवासगाया वि होत्था' ऐसा कथन आया है। इससे सिद्ध है कि भगवान महावीर के पिता सिद्धार्थ पापित्यीय श्रमणोपासक और माता त्रिशला श्रमणो पासिका थीं।। डॉ. विमलचरण लॉ के अनुसार भगवान पार्श्व के धर्म का प्रचार भारत के उत्तरवर्ती क्षत्रियों में था, वैशाली उसका मुख्य केन्द्र था। वृज्जिगण के प्रमुख महाराज चेटक भगवान पार्श्वनाथ के अनुयायी थे२५ । कपिलवस्तु में भी पार्श्व का धर्म फैला हुआ था, वहाँ न्यग्रोधाराम में शाक्य निर्ग्रन्थ श्रावक वप्प के साथ बुद्ध का संवाद हुआ था। . हर्सवर्थ ने भगवान पार्श्वनाथ को गौतम बुद्ध और महावीर से पूर्ववर्ती पुरुष के रूप में स्वीकार करते हुए लिखा है कि नातपुत्र (भगवान महावीर)
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy