SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पापित्य कथानकों के आधार पर भ. पार्श्वनाथ के उपदेश । होते हैं। तिर्यंचों की एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक पांच प्रमुख योनियां होती हैं। मनुष्य गति में समर्छन एवं गर्भज योनि होती है। देवगति चार प्रकार की होती है। पंचेन्द्रिय तिर्यंच और गर्भज मनुष्यों की संख्या अन्य योनियों से अल्प होती है। मनुष्यों की तुलना में देव सौ गुने और तिर्यंच एक हजार गुने होते हैं। इन उत्तरों में जीव से जीव की उत्पत्ति या सत्कार्यवाद का भी परोक्षत: उल्लेख किया गया है। विभिन्न गतियों में उत्पत्ति पूर्वकृत कर्मबंध की प्रकृति पर निर्भर करती है। इन कथानकों में अनेक स्थलों पर यह बताया गया है कि अनेक बार पापित्य श्रावक एवं स्थविर चतुर्याम से पंचयाम धर्म में दीक्षित हुये और महावीर संघ की शोभा बढ़ायी। राजप्रश्नीय : कुमारश्रमणकेशी - प्रदेशी संवाद : आत्मवाद ___ राजप्रश्नीय सूत्र को उपांगों में गिना जाता है। उसमें केशी-प्रदेशी संवाद के अन्तर्गत शरीर-भिन्न आत्मवाद का तार्किक उन्नयन किया गया है। यद्यपि कुछ विद्वान इस केशी को पापित्य केशी से भिन्न मानते हैं पर अधिकांश पूर्वी एवं पश्चिमी विद्वान उन्हें पार्वापत्य ही मानते हैं। भ. पार्श्व का युग उपनिषदों की रचना का युग था जब क्रियाकाण्ड ने ज्ञानकाण्ड का रूप लिया और स्वतंत्र आत्मवाद का उपदेश दिया। इसी उपदेश को आचार्य केशी ने अनुभूति-पुष्ट करने के बदले तर्क-पुष्ट किया और दुराग्रह एवं एकांतवाद को छोड़ने का आग्रह किया। इस संवाद में ज्ञान के पांच प्रकारों का भी वर्णन है - उससे पृथक आत्मवाद से संबंधित आठ तर्क हैं जो निम्न हैं : ... . (१) परलोक (नरक एवं देवलोक) गत संबंधी चार कारणों से तत्काल नहीं __ आ सकते (स्थानांग, ४), अत: प्रतिबोध नहीं दे सकते। (२) आत्मा वायु के समान अप्रतिहत गति वाला है। शून्य में वायु गति नहीं करती। (३) मन्दबुद्धि वालों के लिये आत्मवाद - जैसा सूक्ष्म विषय बोधगम्य नहीं . है (ज्ञानावरण कर्म)
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy