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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
(४) आत्मा में हवा के समान भार नहीं होता। यह अगुरु लघु है। (५) शरीरधारी जीव में कर्मोदय से शक्ति-भिन्नता व्यक्त होती है। (६) आत्मा वायु के समान अदृश्य है, सूक्ष्म है, यह अमूर्त है। (७) आत्मा - प्रदेशों में संहार - विसर्पण की योग्यता है।
वर्तमान युग में यहाँ वायु और अग्नि तप्त लोहे के दृष्टान्तं भौतिक तिजस-कार्मण शरीरी) जीव के अस्तित्व को सिद्ध करते हैं, अमूर्त आत्म जत्व को नहीं (परन्तु उपकरण और प्रयोग विहीन युग में लौकिक उदाहरणों द्वारा अमूर्त तत्व को सिद्ध करने की कला अनूठी ही कहलायेगी)। यह मनोवैज्ञानिक भी है। इसी लिये राजा-प्रदेशी केशी का अनुयायी बन . गया। लगता है, यह संवाद गणधर, गौतम से भेंट के पूर्व का है क्योंकि केशी-गौतम संवाद में तो वे महावीर - संघ में दीक्षित हो गये थे।
निरयावलियाओ : सोमिल ब्राह्मण और पंच अणुव्रत
वाराणसी के सोमिल ब्राह्मण ने पार्श्व के उपदेश सुनकर व्रतों की दीक्षा ली। बाद में अनेक प्रकार के साधुओं के कारण अनेक बार उनका अतिक्रमण किया और मिथ्यात्वी हो गया। एक हितकारी देव के बार बार याद कराने पर उसने पुन: १२ व्रत धारण किये, व्रत-तप-उपवास किये। वह मर कर देव हुआ। साध्वी भूता की कथा का भी यही रूप है पर उसमें उपदेश नहीं है। फिर भी, ऐसा प्रतीत होता है कि सोमिल का यह कथानक पार्श्वकालीन नहीं होना चाहिये क्योंकि उसमें चातुर्याम के बदले पंचयाम का उल्लेख है। साथ ही, भगवती सूत्र १८.१० में भी सोमिल ब्राह्मण का कथानक है और उसमें भी वे ही प्रश्न हैं जो निरयावलियाओ में हैं पर उसके मिथ्यात्वी होकर पुर्नदीक्षित होने की बात नहीं है। साथ ही, यह कथानक वाणिज्य ग्राम से संबंधित है । इसलिये दोनों कथानकों के सोमिल ब्राह्मण अलग व्यक्ति होना चाहिये पर पंचयाम की संगति कैसे बैठेगी?