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________________ (४६) इस समुद्र में जो छप्पन अन्तर द्वीप है, उसका कथन मैने हिमवंत पर्वत के प्रकरण में कहा है । (२३६) एवमेकाशीतिरस्मिन्, द्वीपा लवण वारिधौ । वेलन्धराचलाश्चाष्टौ, दृष्टा दृष्टागमाब्धिभिः ॥२४०॥ इस प्रकार चार वेलंधर पर्वत, चार अनुदेलंधर पर्वत, बारह चन्द्र द्वीप, बारह सूर्यद्वीप, एक गौतम द्वीप और छप्पन अर्न्तद्वीप, १२+१२+१+५६ = ८१ इस तरह लवण समुद्र में इक्यासी द्वीप और आठ वेलंधर पर्वत है जो कि आगम समुद्र दर्शक महापुरुषों ने श्रुत ज्ञान द्वारा देखे हैं। (२४०) महापाताल कलशाश्चत्वारो लघवश्च ते । सहस्राः सप्त चतुरशीतिश्चाष्टषै शतानि च ॥२४१।। । इस लवण समुद्र में चार महापाताल कलश और सात हजार आठ सौ चौरासी (७८८४) छोटे पाताल कलश हैं. । (२४१). रत्नद्वीपादयो येऽन्ये, श्रूयन्तेऽम्मोनिधाविह । द्वीपास्ते प्रतिपत्तव्याः, प्राप्त रूपैर्यथागमम् ॥२४२॥ रत्न द्वीप आदि अन्य भी इस समुद्र में जो द्वीप सुने जाते हैं उनका स्वरूप आगम में कहे अनुसार जानना । (२४२) . सुधांशवोऽस्मिंश्चत्वार श्चत्वारोऽश्चि तीयधौ। संचरन्ति समश्रेण्या, जम्बूद्वीपेन्दु भानुभिः ॥२४३॥ इस समुद्र में चार चन्द्र और चार सूर्य हैं जो जम्बू द्वीप के चन्द्र और सूर्य की समश्रेणि में विचरण करते हैं। (२४३) यदा जम्बूद्वीपगतश्श्शारं चरति भानुमान् । एको मेरोदक्षिणास्यां, तदाऽस्मिन्नम्बुधावपि ॥२४४॥. तेन जम्बूद्वीपगेन, समश्रेण्या व्यवस्थितौ । . दक्षिणस्यामेवमेरोद्वौ चारं चरतो रवी ॥२४५॥ एकस्तत्रार्वाक् शिखायाः सम श्रेण्या सहामुना। . शिखायाः परतोऽन्योऽब्धावुक्षेव युगयन्त्रितः ॥२४६॥ .
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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