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________________ (४५) जलोच्छ्यावगाहादि, सर्वं ततोऽविशेषितम् । गौतम द्वीपवद्वाच्यं सर्वेषामपि सर्वथा ॥२३४॥ • इन सब द्वीपों के पानी की गहराई आदि सर्व ही सभी प्रकार से गौतम द्वीप के समान जानना । किन्तु तत्रास्ति भौमेयमेषु प्रासादशेखरः । वाच्यः प्रत्येकमेकैको, भौमेय सममानकः ॥२३५॥ परन्तु वहां भूमि सम्बन्धी भवन है, इन सब द्वीपों में श्रेष्ठ प्रासाद है, ये प्रासाद प्रत्येक द्वीप में एक-एक है । गौतम द्वीप की भूमि सम्बन्धी भवन समान मान वाला है। (२३५) प्रतिप्रासादमे कै कं सिंहासनमनुत्तरम् । तेषु चन्द्रांश्च सूर्याश्च, प्रभुत्वमुपभुञ्जते ॥२३६॥ प्रत्येक प्रासाद के अन्दर एक-एक उत्तम सिंहासन है, उस सिंहासन ऊपर चन्द्र और सूर्य आधिपत्य भोगते हैं । (२३६) सुस्थिता नरवत्सेव्याः, सामानिकादिभिः सुरैः । वर्ष लक्षसहस्राढय मल्योपमायुषः क्रमात् ॥२३७॥ - सुस्थित देव के समान सामानिक देव आदि से सेवा होते ये चन्द्र और सूर्य - अनुक्रम से एक लाख वर्ष से अधिक और एक हजार वर्ष से अधिक एक पल्योपम के आयुष्य वाले होते है । अर्थात् चन्द्र का आयुष्य एक पल्योपम और एक लाख वर्ष का है और सूर्य का एक पल्योपम और एक हजार वर्ष का आयुष्य होता है । (२३७). एतेषां राजधान्योऽपिस्वस्वदिक्षु मनोरमाः । स्युः सुस्थितपुरीतुल्या:परिस्मिल्लवणार्ण वे ॥२३८॥ इन सब की मनोहर राजधानियां अपने-अपने दिशा में आगे के लवण . समुद्र में है और वह सुस्थित देव की नगरी के समान है । (२३८) ये तु सन्त्यन्तर द्वीपाः षट् पन्चाशदिहाम्बुधौ । निरूपितास्ते हिमवगिरि प्रकरणे मया ॥२३६॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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