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________________ (४४) जम्बू द्वीप स्थायि मेरोः प्रतीच्यां दिशि निश्चितम् । अष्टौ दिनकरद्वीपा दीपा इव महारूचः ॥ २२८ ॥ युग्मं || उसी तरह से घातकी खण्ड की वेदिका के अन्त भाग से लवण समुद्र में बारह हजार योजन आगे बढ़ने के बाद और जम्बू द्वीप के मेरूपर्वत से पश्चिम दिशा में निश्चित रूप में आठ सूर्य द्वीप आते हैं, मानों महातेजस्वी दीपक न हो ! इस तरह वे दिखते हैं । (२२७-२२८) बहिः शिखायाश्चरतोद्वौ द्वीपावर्कयोर्द्वयोः । षट् षण्णां घात की खण्ड र्वाचीनार्द्ध प्रकाशिनाम् ॥ २२६ ॥ इन आठ सूर्य द्वीपो में लवण समुद्र की शिखा के पीछे के विभाग में परिभ्रमण करने वाले सूर्य के दो द्वीप है और शेष छः द्वीप घातकी खंड के पूर्वार्ध को प्रकाश करने वाले छ: सूर्य के है । (२२६) तथैव घातकी खण्ड वेदिकान्तादनन्तरम् । योजनानां सहस्रेषु, गतेसु द्वादशस्विह ॥ २३०॥ प्राच्यां जम्बू द्वीप मेरो:, सन्त्यष्टौ लवणोदधौ । राशिद्वीपास्तत्र च द्वौ, शिखायाश्चरतोर्बहिः ॥२३१॥ षडन्ये घातकीखण्डार्वाक्तनार्द्ध प्रचारिणाम् । षण्णां हिमरूचामेवमेते सर्वेऽपि संख्यया ॥२३२॥५ स्युश्चतुर्विशंतिश्चन्द्रसूर्यद्वीपाः सर्वेऽप्यमी । गौतम द्वीप सद्दशा, मानतश्च स्वरूपतः ॥ २३३ ॥ इसी ही तरह से घातकी खंड की वेदिका से लवण समुद्र में बारह हजार योजन जाने के बाद जम्बू द्वीपस्थ मेरू पर्वत से पूर्व दिशा में आठ चन्द्र द्वीप है । उसमें दो द्वीप लवण समुद्र की शिखा के बाह्य विभाग में भ्रमण करने वाले चन्द्र के है और छः द्वीप घातकी खंड के पूर्वार्ध में भ्रमण करने वाले हैं । ये सूर्य और चन्द्र द्वीप कुल चौबीस है, एवं ये चौबीस द्वीप प्रमाण से और स्वरूप से सर्व प्रकार से गौतम द्वीप के समान है । (२३०-२३३)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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