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अतीत्य तिर्यगन्यस्भिल्लवणाम्भोनिधौ भवेत् । योजनानां सहस्त्रैर्दादशभिर्विजयोपमा ॥२२२॥
लवण-समुद्र के अधिपति इस सुस्थित देव की राजधानी गौतम द्वीप से पश्चिम दिशा में असंख्य द्वीप समुद्र पार करने के बाद दूसरे लवण समुद्र में तिरछे बारह हजार योजन आगे आती है उसका स्वरूप विजय राजधानी के समान है। (२२१-२२२)
जम्बू द्वीप वेदिकान्तात् , प्रतीच्यामेव मेरूतः । योजनानां सहस्राणि, द्वादशातीत्य वारिधौ ॥२२३॥ स्युश्चत्वारो रवि द्वीपा, द्वौ जम्बू द्वीपचारिणोः । भान्वोद्वौं चार्वाशिखाया,लवणाम्बुधिचारिणोः ॥२२४॥
अब सूर्य और चन्द्र द्वीप का वर्णन करते है - मेरू पर्वत से पश्चिम दिशा में जम्बू द्वीप की वेदिका की पास से लवण समुद्र में बारह हजार योजन दूर जाने के बाद चार सूर्य द्वीप आते है, उसमें दो द्वीप जम्बू द्वीप में परिभ्रमण करने वाले सूर्य है और दो द्वीप लवण समुद्र.की शिखा के पूर्व विभाग में घूमने वाले सूर्य के है । (२२३-२२४) . . . . मेरो प्राच्यां दिशि जम्बू द्वीपस्य वेदिकान्ततः ।
स्युर्योजन सहस्राणां, द्वादशानामन्तरम् ॥२२५॥
चत्वारोऽत्र शशिद्वीपा, द्वौ जम्बूद्वीपचारिणोः । ... इन्द्रो द्वौं चार्वाक् शिखाया,लवणोदधिचारिणोः ॥२२६॥
'मेरू पर्वत से पूर्व दिशा में जम्बू द्वीप की वेदिका के अन्त विभाग से बारह हजार योजन दूर जाने के बाद चार चन्द्रद्वीप आते है उसमें दो जम्बू द्वीप के चन्द्र के है और दो शिखा से पूर्व भाग में परिभ्रमण करने वाले चन्द्रों के द्वीप है । (२२५-२२६)
तथैव घातकी खण्ड वेदिकान्तादतिक्रमे । स्युर्योजन सहस्राणां, द्वादशानामिहाम्बुधौ ॥२२७॥