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इस भवन के मनोहर मध्य भूमि भाग में एक बड़ी मणि पीठिका शोभ रंही है । उसकी लम्बाई चौड़ाई एक योजन है और ऊंचाई आधे योजन की है । इस मणि पीठिका के ऊपर सुस्थित नामक देवों के योग्य शय्या है । जिसका वह हमेशा उपभोग करते हैं । (२१४-२१५)
सुस्थितः सुस्थिताभिख्यो लवणोदधि नायकः । चतुः सामानिक सुरसहस्राराधितक मः ॥२१६॥ परिवारयुजां चारुरूचां चतसृणां सदा । पट्टाभिषिक्त देवीनां, तिसृणामपि पर्षदाम् ॥२१७॥ सप्तानां सैन्यसेनान्यामात्मरक्षकनाकिनाम् । षोडशानां सहस्राणामन्येषामपि भूयसाम् ॥२१८॥ सुस्थिताख्यराजधानीवास्तव्यानां सुधाभुजाम् ।। भुङ्क्ते स्वाभ्यं तत्र भूरिसुराराधितशासनः ॥२१६॥
। चतुर्भि कलापकं । सुस्थित देव के परिवार का वर्णन करते है :- सम्यक् प्रकार से रहने वाला सुस्थित नाम का देव लवण समुद्र का स्वामी है । उसके चरणों की सेवा करने वाले चार हजार सामानिक देव हमेशा रहते हैं । अपने अपने परिवार से युक्त और सुन्दर कान्ति वाली पट्टाभिषिक्त चार पट्टरानियां है । तीन पर्षदा, सात प्रकार सैना, सात सेनापति और सोलह हजार आत्मरक्षक देवता है । ये सब तथा अन्य भी सुस्थित नामक राजधानी में रहने वाले अनेकानेक देवताओं का स्वामीत्व वह भोग रहा है और अनेक देव उनकी आज्ञा पालन कर रहे हैं । (२१६-२१६)
रत्नद्वीपादिपतयो, लवणाम्भोधिवासिनः । देव्यो देवाश्च ते सर्वेऽप्यस्यैव वशवर्तिनः ॥२२०॥ ..
लवण समुद्र में रहे रत्न द्वीप आदि के अधिपति जो कोई देव और देवियां हैं वे सब भी इसी सुस्थित देवता के वश रहते हैं। (२२०)
राजधानी सुस्थितस्य, लवणाधिपतेः किल । प्रतीच्यां गौतमद्वीपादसङ्ख्यद्वीपवारिधीन् ॥२२१॥