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स्वस्वावासपर्वतानामाधिपत्यममी सदा । पालयन्ति पूर्व जनमार्जितपुण्यानुसारतः ॥१३७॥ त्रिभि विशेषकं ।।
अब चार देवों के वैभव का वर्णन करते हैं :- चार हजार सामानिक देवता, चार पट्टाभिषिक्त देवियां, तीन पर्षदा, सात प्रकार की सेना, सात सेनाधिपति और सोलह हजार आत्मरक्षक देवों से हमेशा सेवा होती तथा पूर्वजन्म में उपार्जन किए पुण्य अनुसार से ये सभी देव हमेशा अपने अपने आवास पर्वतों के आधिपत्य का पालन करते हैं । (१३३-१३५)
आज्ञा प्रतीच्छका एषां, सन्त्येतदनुयायिनः । अनुवेलन्धरास्तेषां, विदिक्ष्वावासपर्वताः ॥१३६॥
इन चारों देवताओं की आज्ञा को स्वीकार करने वाले और उसके अनुसार चलने वाले अनुवेलंधर देवता है उनका आवास पर्वत की विदिशाओं में होता है:। (१३६)
कर्कोटकाद्रिरैशान्यां, विद्युत्प्रभोऽग्निकोण के। . कैलाशो वायवीयायां, नैर्ऋत्यामरूणप्रभाः ॥१३७॥
ईशान कोने में कर्कोटक, अग्नि कोने में विद्युत् प्रभ, वायव्य कोने में . कैलाश और नैऋत्य कोने में अरूण प्रभ नामक अनुवेलंधर पर्वत है । (१३७)
कर्कोटकः कर्दमकः कैलाशश्चारूण प्रभः । । एषां चतुर्णामद्रीणामीशा गोस्तूप सश्रियः ॥१३८॥
इन चार अनुवेलंधर पर्वत के स्वामी अनुक्रम से कर्कोटक, कर्दमक, कैलाश, और अरूण प्रभ नाम के देव हैं । इनका वैभव गोस्तूप देव अनुसार समझना चाहिए । (.१३८)
यथास्वमेषामष्टानांरम्या दिक्षु विदिक्षु च । ।
राजधान्यः स्वस्व नाम्ना, परिस्मिन्लवणार्णवे ॥१३६॥ .
इन आठ वेलंधर देवों की अपने-अपने नाम की दूसरे लवण समुद्र में दिशा और विदिशाओं में सुन्दर राजधानियां है । (१३६)