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________________ (२७) पश्चिमायां शंखनामा, नगः सोऽप्यन्वितामिधः । शङ्खाभैः शतपत्राद्यैर्जलाश्रयोदम्वैर्लसन् ॥१२८॥ पश्चिम दिशा में यर्थाथ नामवाला शंख नामक वेलंधर पर्वत है जो जलाशय में उत्पन्न हुए शंख सदृश कमलों से शोभायमान हो रहा है । (१२८) उत्तरस्यां दिशि वेलन्धरावास धराधरः । दकसीमाभिधः शीतशीतोदोदकसीमाकृत ॥१२६॥ उत्तर दिशा में दक सीमा नामक वेलंधर पर्वत है जो कि शीता और शीतोदा नदी के पानी की सीमा करने वाला है, अर्थात् मर्यादा बांधने वाला है । (१२६) शीताशीतोदयोनद्योः श्रोतांसीह धराधरे । , प्रतिघ्नातं प्राप्नुवन्ति दक सीमाभिधस्ततः ॥१३०॥ शीता और शीतोदानदी के प्रवाह का इस पर्वत में प्रतिघात होता है अर्थात् रुक जाता है, इससे इस पर्वत का नाम दक सीमा है । (१३०) एवं च शीता शीतोदे, पूर्व पश्चिमयोर्दिशोः । प्रविश्य वारिधौ याते, उदीच्यामिति निश्चयः ॥१३१॥ इस तरह से शीता और शीतोदा नदी पूर्व पश्चिम दिशा में से समुद्र में प्रवेश . करके उत्तर दिशा में जाती है इस तरह यहां निश्चय होता है । (१३१) गोस्तूप गोस्तूप सुरो, दकभास गिरौ शिवः । शो शखौ दकसीमा पर्वते च मनः शिलः ॥१३२॥ गोस्तूप पर्वत के ऊपर गोस्तूप नामक देव है, दकभास पर्वत पर शिव नाम का देव है, शंख पर्वत पर शंख नाम का देव है और दक सीमा पर्वत के ऊपर मन शील नामक देव है । (१३२) सामानिक सहस्राणां, चतुर्णां च चतसृणाम् । पट्टाभिषिक्त देवीनां, तिसृणामपि पर्षदाम् ॥१३३॥ सैन्यानां सैन्यनाथानां, सप्तानामप्यधीश्वराः । आत्मरक्षिसहस्त्रैश्च, सेव्याः षोडशभिः सदा ॥१३४॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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