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समय अन्य ऐसे प्रकार के वायु की बात नहीं है । 'वेल नाइक्कभइ' = तथा प्रकार के वायु द्रव्य के सामर्थ्य से और ज्वार का उस प्रकार का स्वभाव होने से इस तरह से कहा है । यहां 'ईषुत' शब्द का अर्थ अलग अलग भाव में कहा है । ईसि पुरोवायः- यहां चार प्रकार वायु कहा है - १- 'सत्रेहवात' :- अर्थात् भीनी-पानी के अंशवाली पवन-वायु । २- पच्छावाय - जो वनस्पति आदि को हितकारी वायु हो । । ३- 'मन्दावाय' :- जो धीरे-धीरे मन्द रूप में चलती हो
और ४- 'महावाय' :- प्रचंडवायु अर्थात् बहुत तेज गति से चलता हैं । वह वायु ।'
वेलन्धराणामेतेषां, भवन्त्यावास पर्वताः ।
अस्मिन्नेवाम्बुधौ पूर्वादिषु दिक्षु चतसृषु ॥१२४॥ तथाहि - जम्बूद्वीप वेदिकान्तात्पूर्वस्यां दिशी वारिधौ। :
___गोस्तूपः पर्वतो भाति, चेलन्धर सुराश्रयः ॥१२५॥
इन वेलंधर देवताओं के आवास पर्वत इसी समुद्र में पूर्वादि चार दिशाओं में रहे हैं । वे इस प्रकार :- जम्बू द्वीप की वेदिका अन्तिम भाग से समुद्र में पूर्व दिशा के ओर वेलंधर देव के आश्रय रूप गोस्तूप नामक पर्वत शोभायमान है। (१२४-१२५)
नाना जलाशयोद्भूतैः शत पत्रादिभिर्यतः ।। गोस्तूपाकृतिभी रम्यो, गोस्तूपोऽयं गिरिस्ततः ॥१२६॥
विविध प्रकार के जलाशयों में उत्पन्न हुए गोस्तूप आकार वाले शतपत्र कमलों से यह पर्वत रमणीय होने के कारण यह गोस्तूप-गिरि पर्वत कहलाता है। (१२६)
जलंयभ्दासयत्यष्टयोजनी परितोऽशुभिः । .. ततो नाम्नोदकभासोऽपाच्यां वेलन्धराचलः ॥१२७॥
दक्षिण दिशा में रहे पर्वत के चारों तरफ अपने किरणों से आठ योज़न तक पानी को प्रकाशित करता है, इससे उसे उदकभाव वेलंधर पर्वत कहलाता है । (१२७)