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________________ (२५) ६०००० - शिखा ऊपर के नाग कुमार देवता १७४००० - कुल संख्या हुई । (१२१) एषामुपक मेणैव, निरूद्धा नावतिष्ठते । वेलेयं चपलाऽतीव, महेलेव रसाकुला ॥१२२॥ किंतु द्वीपस्थसंघार्हदेवचक्रयादियुग्मिनाम् । पुण्याज्जगत्स्वभावाच्च, मर्यादां न जहाति सा ॥१२३॥ रस आस्वादन की शोकीन स्त्री के समान ये अत्यन्त चलचल जल-तरंगेवेला वेलंधर देवताओं के प्रयास से ही रूकती है ऐसा नहीं है परन्तु द्वीप में रहे श्री संघ, अरिहंत देव, चक्रवर्ती युगलियों आदि के पुण्य से और तथा प्रकार के जगत् स्वभाव के कारण से ज्वार मर्यादा नहीं छोड़ती है । (१२२-१२३) "इदंजीवाभिगम सूत्रवृत्यभिप्रायेण, पञ्चमाङ्गे तद्वृत्तौ च -'जयाणं दीविच्चयाई सिंणोणं तया सामुद्दया ई सिं जया णं सामुद्दया ईसिंणो णं तया दीविच्चयाईसिं? गोयम!तेसिणंवायाणंअन्नमन्नविविच्चा सेणंलवणसमुद्र वेलं नातिक्कमई"अन्योऽन्य व्यत्यासेन" यदैके ईषत् पुरो वातादि विशेषणा वान्ति तदेतरे नतथा विधावान्तीत्यर्थः । वेलं नाइक्क मइंत्ति तथा विधवायुद्रव्य सामर्थ्याद्वेलया स्तथा स्वभाव त्वाच्चे' त्युक्तं, अत्र ईसि पुरोवाता दीनि विशेषणानि त्वेव - 'ईसिं पुरोवाय'त्ति मनाक् सत्रेह वाता: ‘पच्छावाय'त्ति पथ्या वनस्य त्यादिहिता वायवः मंदा वायं त्ति मन्दा:- शनैः शनैः संचारिणः अमहावाता इत्यर्थः 'महावाय'त्ति उद्दण्डावाताः, अनल्पा इत्यर्थः ॥" ___'यह बात श्री जीवाभिगम सूत्र की टीका के अभिप्राय से कहा है तथा पंचमांग श्री भगवती सूत्र की टीका-वृत्ति में भी कहा है :- हे भगवन ! जब द्वीप की तरफ पुरोवात आदि वायु कुछ हो उस समय समुद्र तरफ पुरोवात आदि वायु नहीं होता? और जब समुद्र की तरफ पुरोवात आदि वायु कुछ हो उस समय द्वीप की ओर पुरोवात आदि नहीं होता ! उसका कारण क्या है ? इसका उत्तर श्रमण भगवान महावीर प्रभु देते हैं कि - हे गौतम ! वह वायु अन्योन्य (एक दूसरे से) विपरीत होने के कारण से समुद्र की ज्वार तरंगे आगे नहीं बढ़ती है । 'अन्योत्य व्यत्यासे' = जब कई पुरोवातादि विशेषण वाले वायु की कुछ वायु भी हैं । उस
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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