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________________ (२४) पाताल कलश में उत्पन्न हुई वायु के विक्षोभ के कारण से शिखा के ऊपर कुछ कम आधा योजन-दो कोस हमेशा दिन में दो बार समुद्र ज्वार के समय बढ़ती है और वह वायु शान्त होते वह ज्वार भी शान्त होता है । (११५-११६) तां च वेलामुच्छलन्ती, दीव्यग्रकराः सुरा । __ शमयन्ति सदा नागकुमारा जगतः स्थितेः ॥१७॥ ... इस तरह ऊपर छलकती वे पानी की ज्वार को नागकुमार देवता हमेशा बड़े करछे हाथ में लेकर रोकते हैं । ऐसा जगत स्वभाव है । (११७) तत्र जम्बूद्वीप दिशि, शिखावेलां प्रसृत्वरीम् । . द्वि चत्वारिंशत्सहस्रा, घरन्ति नागनाकिनः ॥११८॥ जम्बू द्वीप की दिशा भी फैलने वाली ज्वार के बियालीस हजार (४२०००) वेलंधर नागकुमार देवता रोकते हैं । (११८). घातकी खण्ड दिशि च, प्रसर्पन्तीमिमां किल । . नीवारयन्ति नागानां, सहस्राणि द्विसप्ततिः ॥११६॥ घात की खण्ड की दिशा तरफ फैलने वाला ज्वार-समुद्र के जल उभार को बहत्तर हजार (७२०००) नागकुमार देवता रोकते हैं । देशोनं योजनार्द्ध यद्वर्द्धतेऽम्बु शिखोपरि । षष्टिांगसहस्राणि, सततं वारयन्ति तत् ॥१२०॥ कुछ कम दो कोस-आधे योजन जो पानी की शिखा ऊपर बढ़ती हैं उसे साठ हजार (६००००) नागकुमार देवता रोकते हैं । (१२०) लक्षमेकं सहस्राणि, चतुः सप्ततिरेव च । वेलन्धरा नागदेवा, भवन्ति सर्वसंख्यया ॥१२१॥ इस तरह वेलंधर नागदेवताओं की कुल संख्या एक लाख चौहत्तर हजार (१७४०००) की होती है । वह इस तरह : ४२००० - जम्बू द्वीप की ओर नागकुमार देवता ७२००० - घात की खण्ड की ओर नाग कुमार देवता . ..
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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