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________________ (१६) _अत: दूसरे पंक्ति में दो सौ सोलह कलश होंगे, और इस तरह नौंवी पंक्ति में दो सौ तेईस लघु पाताल कलश होते हैं । (८६) प्रथम पंक्ति में २१५, दूसरे में २१६, तीसरे में २१७, चौथी में २१८, पांचवे में २१६, छट्ठी में २२०, सातवीं में २२१, आठवीं में २२२, और नौंवी पंक्ति में २२३ लघुपाताल कलश होते हैं। ___. एक सप्तत्युपेतानि, शतात्येकोनविंशतिः । ___एकै कस्मिन्नन्तरे स्युर्लघवः सर्वसङ्ख्यया ॥६०॥ एक से दूसरे महापाताल कलश के अंतर में सब मिलाकर उन्नीस सौ इकहत्तर (१६७१) लघु पाताल कलश होते हैं । (६०) चतुर्णामन्तराणां च मिलिताः सर्वसंख्यया । ...... स्फूरच्चतुरशीतीनि स्युः शतात्यष्ट सप्ततिः ॥६१॥ चारों महापाताल कलशों के अन्तर में कलशों की सर्व संख्या सात हजार आठ सौ चौरासी (७८८४) होती हैं । (६१) . "अयं च संप्रदायो 'वीरं जयसेहरे' त्यादि क्षेत्र समास वृत्यभिप्रायेण, बृहत्क्षेत्र समास वृत्तौ जीवाभिगम वृत्यादौ त्वयं न दृश्यते ॥" - इस बात का इस तरह से संदर्भ 'वीर जयसेहर' इत्यादि लघु क्षेत्र समास की वृत्ति के अभिप्राय अनुसार है बृहत्क्षेत्र समास की टीका में यह परम्परा नहीं दिखती है । .. लघु पाताल कलशा, अमी सर्वेऽप्यधिष्ठिताः । ... सदामहर्द्धिकैर्देवैः, पल्योपमार्द्धजीविभिः ॥६॥ - आधे पल्योपम के आयुष्य वाले महर्द्धि के देवताओं से ये सब लघु पाताल कलश हमेशा अधिष्ठित होते हैं । (६२) "अयं क्षेत्रसमासवृत्याद्यभिप्रायः, जीवाभिगमसूत्रवृत्तौ च अर्द्धपल्योपम स्थितिकाभिर्देवताभिः परिगृहीता इत्युक्तं ॥" _ 'यह बात क्षेत्र समास टीका के अभिप्राय से जानना और जीवाभिगम सूत्र की टीका में तो ये अर्ध पल्योपम के आयुष्य वाले देवता से अधिष्ठित हैं । इस तरह कहा है ।'
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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