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________________ (१७) में उसका विस्तार (व्यास) दो लाख नब्बे हजार योजन का होता है और इसकी परिधि नौ लाख सत्रह हजार साठ योजन की होती है । (७८-७६) - "अयं भावः पञ्चनवतिः सहस्राः समुद्र संबंन्धिन एक पार्श्वे, तावन्त एव द्वितीय पार्श्वे मध्ये चैकं लक्षं जम्बू द्वीप संबन्धि, एवं द्विलक्षनवति सहस्त्र विष्कम्भ क्षेत्रस्य परिधिर्नव लक्षाः सप्तदश सहसा षट्शतीत्येवंरूपो भवतीति ॥" - "यहां तात्पर्य यह है कि समुद्र सम्बन्धी पंचानवे हजार योजन एक तरफ, उसी ही तरह दूसरी तरफ पचानवे हजार योजन, एवं मध्य में जम्बूद्वीप सम्बन्धी एक लाख योजन; इस तरह दो लाख नब्बे हजार योजन क्षेत्र का विस्तार है और क्षेत्र की परिधि नौ लाख सत्रह हजार साठ योजन (६०१७०६०) योजन होता है ।" चत्वारिंशत्सहस्रात्माशोध्यते मुखविस्तृतिः । . महापाताल कुम्भनामस्माद्राशेस्ततः स्थितम् ॥१०॥ अष्टौ लक्षाः षष्टयधिकाः, सहस्राः सप्त सप्ततिः। भागे चतुर्भिरेतेषां, लब्धं तत्रान्तरं भवेत् ॥१॥ . लक्षद्वयं सहस्राणामेकोनविंशतिस्तथा । सपञ्चषष्टि द्विशती, कुम्भानां महतां पृथक् ॥२॥ ... महापाताल कलरों के मुख का विस्तार चालीस हजार योजन आता है उसे चार से भाग देने से महापाताल कलशों की परस्पर की दूरी प्राप्त होती है वह दो लाख उन्नीस हजार दो सौ पैंसठ (२१६२६५) योजन का महापाताल कुंभों का एक मुख से दूसरे मुख का अन्तर है । पहले गाथा ६६-७० में मुख का २२७१७० योजन तीन कोस अंतर कहा है वह मुख के मध्य भाग में जानना । जबकि यह कलश के किनारे से जानना । (८०-८२) चतुर्भुप्यन्तरेष्वेषु, षडक्तयो नव नव स्थिताः । लघु पाताल कुम्भानामाद्यपङ्कौ च ते स्मृताः ॥८३॥ प्रत्येकं द्वे शते पञ्चदशोत्तरे किलान्तरम् । पूर्वोक्तं गुरु कुम्भानमेवमेभिश्च पूर्यते ॥८४॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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