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"दाक्षिणात्य कलशस्य बृहत्क्षेत्र समासवृत्तौ केयूप इति नाम, प्रवचन सारो द्वार वृत्तौ केयूर इति समवायांग वृत्तौ स्थानांग वृत्तौ च केतुक इति ॥"
'दक्षिण दिशा के कलश का नाम वृहत्क्षेत्रसमास की टीका में केयूप कहा है, प्रवचन सारोद्वार की वृत्ति में केयूर तथा समवायांग सूत्र और ठाणांग सूत्र की टीका में केतुक नाम कहा है । देशी शब्द से तीनों अर्थ घटते हैं ।'
कालो महाकालनामा, वेलम्बश्च प्रभज्जनः । क्रमादधीश्वरा एषां, पल्यायुषो महर्द्धि काः ॥६४॥
इन चारों कलशों के अधिष्ठायक देव एक पल्योपम के आयुष्य वाले और महाऋद्धि सिद्धि वाले होते है और उनका नाम अनुक्रम से काल, महाकाल, वेलंब और प्रभंजन है । (६४.) . समन्ततो वज़मयात्मनामेषां निरूपिताः ।।
बाहल्यतष्ठिक्करिकाः सहस्त्र योजनोन्मिताः ॥६५॥
ये चारों कलश,सम्पूर्ण रूप में वज्रमय है, इनके पट की मोटाई एक हजार योजन की है । (६५) . . . ... योजनानां सहस्राणि, दश भूले मुखेऽपि च । ... विस्तीर्णा मध्य भागे च लक्ष योजन संमिताः ॥६६॥
ये कलश मूल में नीचे और मुख के ऊपर दस हजार योजन के और मध्यबीच में एक लाख योजन की चौड़ाई वाले हैं । (६६) . एक प्रोदशिक्या श्रेण्या मूलाद्विवर्द्धमानाः स्युः ।
मध्यावधि वक्रावधि ततस्तथा हीयमानाश्च ॥६७॥ (आर्या) .. ये कलश एक प्रदेश की श्रेणि में मूल से मध्य भाग तक बढ़ते हैं, और उसके
बाद मध्य से मुख तक घटते जाते हैं अर्थात् चौड़ाई में नीचे से मध्यभाग तक बढ़ता जाता है तथा बीच से ऊपर तक घटता है । (६७)
"इति प्रवचन सारो द्वार वृत्तौ" परमेतत्त दोप पद्यते यद्येषां मध्यदेशे दश योजन सहस्राणि यावत् लक्ष योजन विष्कम्भता स्यात् यतः प्रदेश वृद्धया ऊर्ध्वं पचंचत्वारिंशद्योजन