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लवण समुद्र की परिधि १५,८१,१३६ योजन की है । उसको चार से भाग देने पर ३६५२८० योजन और कुछ अधिक होता है उसमें से एक-एक द्वार की चौड़ाई आठ योजन निकाल देने पर ३६५२७६ योजन होता है उसमें द्वार के मध्य भाग तक के ४ योजन मिलाने पर ३६५२८० योजन और कुछ अधिक होता है।
द्वाराणां परिमाणं च, निःशेषरचनाञ्चितम् । ..
जम्बूद्वीपद्वारगतमनुसंघीयतामिह ॥५६॥ - इन द्वारों का परिमाण और रचना आदि सारा जम्बू द्वीप के द्वार के वर्णन अनुसार समझ लेना । (५६)
अथास्मिन्नम्बुधौ वेला, वर्द्धते हीयते च यत् । तत्रादिकारणीभूतान्, पाताल कलशान् ब्रुवे ॥६०॥
अब पाताल कलशों का वर्णन करते हैं - इस समुद्र में जो वेला-समुद्र के जल का उभार भरता और घटता है उसका मूल कारण भूत पाताल कलश है, उसका कुछ वर्णन करता हूँ । (६०)
सहस्रान् पञ्चनवति, वगाह्य लवणाम्बुधौ । योजनानां स एकैको मेरोर्दिक्षु चतसृषु ॥६१॥
लवण समुद्र में पंचानवे हजार योजन अवगाहन करके मेरू पर्वत से चारों दिशा में वे एक-एक पाताल कलश रहे हैं । (६१) , एव च - पाताल कुम्भाश्चत्वारो महालिंजरसंस्थिताः ।
वैरं स्मृत्वाऽब्धिना ग्रस्ता,अगस्त्यस्येवपूर्वजाः ॥६२॥ वह इस प्रकार :- वे चारों पाताल कलश बड़े घड़े के आकार वाले हैं । वे मानो पूर्व का वैर याद करके समुद्र ने अगस्तय ऋषि के पूर्वजों को ही ऐसे चार कलशों को ग्रास किया (पकड़ कर रखा) है । (६२)
वडवामुखनामा प्रागपाक्केयूपसंज्ञितः । प्रतीच्यां यूपनामायमुदीच्यामीश्वराभिधः ॥६३॥ .
उसमें जो पूर्व दिशा का कलश है उसका नाम बडवा मुख है, दक्षिण दिशा के कलश का नाम केयूप है, पश्चिम दिशा के कलश का नाम यूप है और उत्तर दिशा को कलश का नाम ईश्वर है । (६३)