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घातकी खंड के पूर्वार्ध में से लवण समुद्र में प्रवेश करती शीतोदा नदी के ठीक ऊपर पूर्वदिशा में विजय द्वार आया है । और विजयंतादि तीन द्वार भी जम्बू द्वीप के समान लवण समुद्र की तीन दिशाओं में अनुक्रम से आए है अर्थात् दक्षिण दिशा में वैजयंत द्वार, पश्चिम दिशा में जयंत द्वार और उत्तर दिशा में अपराजित द्वार आता है । (५२-५३)
विजयाद्याश्च चत्वारो, द्वाराधिष्ठायकाः सुराः । ज्ञेयाः प्रागुक्त विजय सद्दक्षाः सकलात्मना .॥५४॥
विजयादि चारों द्वारों के अधिष्ठायक, विजयादिचार देवताओं से संपूर्ण रूप, पूर्व में कहे अनुसार विजयदेव के समान स्वरूप वाले जानना । (५४)
एतेषां राजधान्योऽपि, स्मृताः सर्वात्मना समाः । राजधान्या विजया, प्राक् प्रञ्चितरूपया ॥५५॥
इनका स्वरूप पहले कह गये हैं ऐसे जम्बू द्वीप के विजय देव की विजय राजधानी के समान प्रत्येक देवों की राजधानी समझना । (५५)
एताः किन्तु स्वस्व दिशि, क्षारोदकभयादिव । असङ्ख्य द्वीप पाथोधीनतीत्य परतः स्थिताः ॥५६॥
नाम्नैव लवणाम्भौधौ, रूचिरेक्षुरसोदके । .:. योजनानां सहस्राणि, वगाह्य द्वादश स्थिताः ॥५७॥
.. परन्तु इन सब में लवण राजधानियाँ इस समुद्र के कड़वे पानी के भय से ही मानो इसी समुद्र से असंख्यद्वीप समुद्रों से असंख्यद्वीप समुद्रों का अतिक्रमण . करने के बाद लवण समुद्र आया है जो कि नाम से ही लवण समुद्र है उसका पानी तो सुन्दर इक्षुरस समान है । उस समुद्र में बारह हजार योजन जाने के बाद उनकी राजधानियां हैं । (५६-५७)
सहस्राः पञ्चनवतिस्तिस्रो लक्षाः शतद्वयम् ।
अशीतियुक् योजनानां, कोशो द्वाराभिहान्तरम् ॥८॥
इस लवण समुद्र के विजयादि चार द्वारों का परस्पर अन्तर तीन लाख पंचानवे हजार दो सौ अस्सी (३६५२८०) योजन और एक कोस है । (५८) इस