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________________ (५५६) उक्तं च -सव्वट्ठाओ नियमा एगंमि भवंमि सिज्झए जीवो । विजयाइविमाणेहिय संखिज्जभवा उ बोद्धव्या ॥६४३॥ चतुविंशति भवान्नातिक्रामन्तीतितु बृद्धवाद कहा है कि सर्वार्थ सिद्ध में से जीव नियमा एक ही जन्म में सिद्ध होते हैं, जबकि विजादि विमान में से संख्याता जन्म भी होता है । (६४३) विजयादि विमानवासी देव भी २४ जन्मों से अधिक जन्म नहीं करता है । इस तरह से श्री वृद्धवाद वालों का कहना है । तथा - चतुर्वेषु विमानेषु, द्विरूत्पन्ना हि जन्तवः । अनन्तरभवेऽवश्यं, प्रयान्ति परमं पदम् ॥६४४॥ परन्तु विजयादि चार विमान में दो बार उत्पन्न हुए जीव अनंता जन्म में अवश्य सिद्ध होते हैं। (६४४) तथोक्तं जीवाभिगम वृत्तौ - "विजयादि चतुर्पु वारद्वयं सर्वार्थ सिद्ध महाविमान एक बारं गमन संभवः तत ऊर्द्ध मनुष्य भवासादनेन मुक्ति प्राप्ते" रिति ।योगशास्त्र वृत्तौ तुविजयादिषु चतुर्खनुत्तर विमानेषु(द्विचरमा)इत्युक्त मिति ज्ञेयं तत्त्वार्थ भाष्येऽपि विजयादि ष्वनुतरेषु विमानेषु देवा द्वि चरमा भवन्ति, द्विचरमा भवन्ति,द्विचरमा इति ततश्चयुता परंद्विर्जानित्वा सिद्धयन्तीति। ___एतट्टीकापि - द्वि चरमत्वं स्पष्टयति - ततौ विजयादिभ्यश्चयुताः परमुत्कर्षेण द्विर्जनित्वा मनुष्येषु सिद्धिमधिगच्छंति विजयादिविमानाच्युतो मनुष्यः पुनरपि विजयादिषु देवस्तत युतो मनुषः स सिद्ध यतीति ।' पञ्चम कर्म ग्रन्थे - 'तिरिनरयति जो आणं नरभव जुअस्स चउपल्लते . सटुं ।' एतद्गाथा सूत्र वृत्यनु सारेण तु विजयादि विमानेषु द्विर्गतोऽपि संसारे कति चिद्भवान् भ्रमति नरक तिर्यग्गति योग्य मपि कर्म वनातीति दृश्यते तदत्र तत्त्वं केवलि गम्यं । श्री जीवाभिगम सूत्र की वृत्ति में तो कहा है कि - विजयादि चार विमान में दो बार तथा सर्वार्थ सिद्ध विमान में एक बार गमन संभव है, उसके बाद मनुष्य जन्म को प्राप्त कर वह मुक्ति में जाता है ।
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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