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(७) योजनानां सहस्रं चोद्वेधोऽत्र समभूतलात् । एवं सप्तदश शतान्युद्वेधोद्धत्रपयोनिधेः ॥३०॥
दोना द्वीपों की वेदिका के अन्तिम विभाग के पास से क्रमश पानी की गहराई और ऊंचाई बढ़ती जाती है वह इस तरह बढ़ती जाती है कि - पंचानवे हजार योजन आगे जाते पानी की ऊंचाई सात सौ योजन होती है और पानी की गहराई एक हजार योजन होती है । इस तरह यहां मध्य भाग से समुद्र की तली से पानी की कुल ऊंचाई सत्रह सौ योजन होती है । (२६-३०)
- ततः परे मध्यभागे, सहस्रदशकातते ।
जलोच्छ्यो योजनानां स्यात्सहस्राणि षोडशः ॥३१॥
उसके बाद के दस हजार योजन विस्तार वाले, मध्य भाग में जल की ऊंचाई सोलह हजार होती है । (३१).
सहस्रमत्राप्युद्वेध; उच्च योद्वेधतस्ततः ।
योजनानां सप्तदश सहस्राण्युदकोच्चयः ॥३२॥ - इस स्थान पर भी समभूतल से पानी की ऊंचाई एक हजार की होती है वहां से उसमें पानी की सोलह योजन ऊंचाई मिलाने पर कुल सत्रह हजार योजन पानी की ऊंचाई होती है। . .
एवं जघन्योच्छ्योऽस्याङ्गलासङ्घयांशसंमितः । . .: उत्कंर्षतो योजनानां, सहस्राणि च षोडश ॥३३॥
मध्य मस्तच्छ्यो वाच्यो, यथोक्ताम्नायतोऽम्बधे।
तत्र तत्र विनिश्चित्यजलोच्छ्र यमेनकधा ॥३४॥ ...इस तरह से पानी की जघन्य से ऊंचाई अंगुल के असंख्यातवें अंश है और उत्कृष्ट से सोलह हजार योजन की है एवं मध्यम ऊंचाई समुद्र के यथोक्त आम्नाय से उस उस स्थान पर अनेक प्रकार की जानना । (३३-३४)
अथास्य लवणाम्भोधेर्गणितं प्रतरात्मकम् । घनात्मकं च निर्णेतुं यथाऽऽगमपुपक्रमे ॥३५॥
अब लवण समुद्र का प्रतरात्मक और धनात्मक गणित करने के लिए आगम अनुसार कहना प्रारंभ करता हूँ । (३५)