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... जम्बू द्वीप और घातकी खंड के किनारे की अंतभूमि से शिखा के उपरितन तल के मध्य में रस्सी रखने से यह गणित होता है और बीच में भी जो आकाश क्षेत्र पानी रहित है वह भी कर्णगति सम्बन्ध अर्थात् समुद्र सम्बन्धित है । इससे वह पानी वाला है । इस तरह मानना चाहिए । (२५-२६)
विवक्षित्वा मानमक्तं जलोच्छ्यस्स निश्चितम् । मेरोरेकादशभागपरिहाणिरिवागमे ॥२७॥
इस तरह से कर्णगति द्वारा विवक्षा करके जल की ऊंचाई का निश्चित रूप मानने का कहा है । आगम में जिस तरह मेरूपर्वत की एकादशा भाग परिहार कहा है वैसे यह समझना चाहिए । (२७)
तथा :- श्री मलयगिरिपादाः "इह षोडशसहस्रप्रमणाया: शिखायाः शिर सि उभयोश्च वेदिकान्तयोर्मूले दवरिकायांदत्तायांयदपान्तराले किमपि जलरहितमाकाशं तदपि कर्णगत्या तदाभाव्यमिति सजलं विवक्षित्वा विवक्षित मुच्यमानमुच्चत्वपरिमाणमवसेयं यथा मन्दर पर्वतं स्यैकादश भाग परिहाणि" रिति॥ - "इस विषय में परम पूज्य आचार्य मलयगिरि जी महाराजा जी कहते हैं कि- यहां सोलह हजार प्रमाण शिखा ऊपर और दोनों वेदिका के अन्त भाग पर रस्सी रखे और उसके बाद बीच में जो आकाश प्रदेश जल रहित रहता है, वह भी कर्णगति द्वारा उसका ही अर्थात् समुद्र सम्बन्धी ऊंचाई का माप समझकर उसकी जल सहित विवक्षा करना चाहिए । जैसे मेरू पर्वत की गिनती में ग्यारहवां भाग परिहाण कहा है, वैसे ही ऊंचाई की परिमाण कहलाती है ऐसा समझना ।"
वस्तुतः पुनरू भयोपयोर्वेदिकान्ततः । प्रदेशवृद्धयोभयतो वर्द्धतेऽम्बु क्रमात्तथा ॥२८॥
वास्तविकता में तो दोनों द्वीप की वेदिका को अन्तिम भाग किनारे से दोनों प्रदेश से वृद्धि क्रमशः पानी की वृद्धि होती जाती है । (२८)
यथाऽस्मिन् पञ्चनवतिसहस्रान्ते भवेजलम । योजनानां सप्त शतान्युच्छ्रितं समभूतलात् ॥२६॥ .