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________________ (५) - पञ्चोनशत भक्तेषु, सत्सु तेषु यदाप्यते । ____तत् षोडश गुणं यावत्तावांस्तत्र जलोच्छ्यः ॥२१॥ यहां इस तरह वृद्ध परम्परा है कि घातकी खंड अथवा जम्बू द्वीप से समुद्र के अन्दर जितने अंश-अंगुल योजनादि जाने के बाद पानी की ऊंचाई जानने की इच्छा हो तो उतने अंश अंगुल योजनादि को पंचानवे के साथ में भाग देना और भाग देने पर जो संख्या बनती हो उससे सोलह गुणा पानी की ऊंचाई वहां होती है । ऐसा समझना । (२०२१) यथाऽत्र पञ्चनवते योजनानामतिक मे । विभज्यन्ते योजनानि, पञ्चोनेन शतेन वै ॥२२॥ एकं योजनमाप्तं यत्तत्षोडशभिरहतम् । योजनानि षोडशैवं, ज्ञातस्तत्र जलोच्छ्यः ॥२३॥ जिस तरह पंचानवे योजन समुद्र में जाने के बाद उस पचानवे को पंचानवे से भाग करने पर एक योजन प्राप्त होता है वैसे सोलह से गुणा करने से सोलह योजन आता है । इससे पंचानवे योजन से पानी की ऊंचाई सोलह योजन समझना । ..:६५६५-१, १४१६ = १६ योजन). (२२-२३) तथाहुः क्षमाश्रमण मिश्रा: जत्थिच्छसिउस्सेहओगाहित्ताणलवण सलिलस्स। .. पंचाण उइविभत्ते सोलसगुणिए गणियमाहु ॥२४॥ श्री जिनभद्र गणि क्षमा श्रमण कहते हैं कि - लवण समुद्र का अवगाहन करके, जहां से पानी की ऊंचाई जानने की इच्छा हो वहां के योजन को पंचानवे की संख्या से भाग देकर सोलह से गुणा करने पर जो संख्या आती है वह उसके पानी की ऊंचाई जानना चाहिए । (२४) एतश्च घातकी खंड जम्बू द्वीपान्त्यभूमितः । दत्वा दवरिकां मध्ये, शिखोपरितलस्य वे ॥२५॥ अपान्तराले च किमप्याकाशं यत् जलोज्झितम् । तत् सर्व कर्ण गत्यैतत्संबन्धीति जलैर्भूतम् ॥२६॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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