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________________ (४) .. जैसे किनारे की समतल भूमि से समुद्र में पंचानवें अंश जाने पर, एक अंश की गहराई होती है । पंचानवे अंगुल जाने पर एक अंगुल गहराई होती है । पंचानवे योजन जाने के बाद एक योजन की गहराई होती है, पंचानवे सौ योजन जाने के बाद सौ योजन की गहराई होती है और दोनों तरफ से पंचानवे हजार योजन जाने के बाद लवण समुद्र के मध्य में एक हजार योजन की गहराई होती है । (१३-१५) . तथाह - जत्थिच्छसि उव्वेहं ओगाहित्ताण लवण सलिलस्स। .. पञ्चाणइउ विभत्ते जं लद्धं सो उ उव्वेहो ॥१६॥ वह इस प्रकार कहा है कि - लवण समुद्र में अवगाहन करके जहां तुम्हे गहराई जानने की इच्छा हो उसे पंचानवे की संख्या के द्वारा भाग.करने से जो उत्तर आए वही उसकी गहराई समझना । (१६) ततश्च - द्वयोर्गोतीर्थयोर्मध्ये सहस्रयोजनोन्मितः । स्यादुद्वेधः सहस्राणि, दश यांवत्समोऽभितः ॥१७॥ और इससे दोनों गोतीर्थ के मध्य में चारों तरफ से समान दस हजार योजन तक है, एक हजार योजन प्रमाण गहराई है । (१७) जम्बू द्वीप वेदिकान्तेऽङ्गुलासंख्यांश संमितम् । सलिलं घातकी खण्ड वेदिकान्तेऽपिताद्दशमं ॥१८॥ ततः पञ्चनवत्यांशैर्वर्द्धन्ते षोडशांशकाः । . अंङ्गुलैः पञ्चनवत्या, वर्द्धते षोडशाङ्गुली ॥१६॥ . जम्बू द्वीप और घातकी खंड की वेदिका के अन्त भाग में अंगुल के असंख्यातवें भाग अनुसार पानी होता है, उसके बाद पंचानवे अंश आगे जाते पानी की शिखा सोलहवें अंश में बढ़ती है और पंचानवे अंगुल जाय तो सोलह अंगुल बढ़ती है । (१६-१६) अत्रायमाम्नाय :घातकीखण्डतो जम्बूद्वीपतो वा पयोनिधौ । जिज्ञास्यते जलोच्छ्रायो, यावत्स्वंशाङ्लादिषु ॥२०॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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