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प्रवेशमार्गरु पो यस्तटाकादिजलाश्रये । भूप्रदेशः क्रमान्नीचः, सोऽत्र गोतीर्थमुच्यते ॥६॥
तलाब आदि जलाशय में प्रवेश के मार्ग रूप पृथ्वी का प्रदेश अथवा किनारे के भाग जो धीरे-धीरे ढलते हुए नीचे जाता है उसे गो-तीर्थ कहते हैं । (६)
गोतीर्थं तच्च लवणाम्बुधावुभयतोऽपि हि । प्रत्येकं पञ्चनवति, सहस्रान् यावदाहितम् ॥१०॥
लवण समुद्र में वह गोतीर्थ समुद्र के दोनों किनारों से होता है अत: जम्बू द्वीप से और घातकी खंड से पचानवे हजार (६५०००) योजन तक ढलान होता है । (१०)
जम्बू द्वीप वेदिकान्तेऽङ्ग लासंख्यांशंसमितम् ।
गोतीर्थं घातकी खण्ड वेदिकान्तेऽपि तादृशम् ॥११॥ _ जम्बू द्वीप से वेदिका (किलो) के अंत में पास में वह गोतीर्थ अंगुल के असंख्यातवें भाग का प्रमाण है, उसी प्रमाण से घातकी खंड की वेदिका के अंत में गोतीर्थ अंगुल के असंख्यातवें भाग का प्रमाण है । (११) .. ततश्च- अब्धावुभयतो यावद्गम्यतेऽशाङ्गुलादिकम् ।
भक्ते तस्मिन् पञ्चनवत्याऽऽप्तं यत्तन्मितोण्डता ॥१२॥ . इससे समुद्र के दोनों किनारे जितने अंश-अंगुल आदि से जाया जाए उसे
उस संख्या को पंचानवे द्वारा भाग करने पर जो संख्या आती है उतने अंश-अंगुल • आदि के माप की समुद्र की गहराई होती है । (१२)
यथा पञ्चनवत्यांशैरतिक्रान्तः पयोनिधौ । भुवोऽशो हीयते पंचनवत्याऽङ्गुलमङ्गुलैः ॥१३॥ योजनैश्च पञ्चनवत्यै कं योजनमप्यथ । शतैः पञ्चनवत्या च योजनानां शतं हसेत् ॥१४॥ एवं च पञ्चनवतिसहस्रान्ते समक्षिते । निम्नतोभयतोऽप्यत्र, जाता सहस्रयोजना ॥१५॥