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________________ (२) इस लवण समुद्र की पंद्रह लाख इक्यासी हजार एक सौ उनतालीस (१५८११३६) में कुछ कम बाह्य परिधि घातकी खंड के पास में है और जम्बू द्वीप के पास है वह तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन से कुछ अधिक है। वह लवण समुद्र की अभ्यंतर परिधि है । (४-५ ) जम्बू द्वीप की चौड़ाई एक लाख योजन की है तथा लवण समुद्र की एक ओर की चौड़ाई दो लाख योजन की है, दोनों तरफ की चौड़ाई चार लाख होती है। बीच में जम्बू द्वीप एक लाख उसमें मिलाने से कुल पांच लाख होती है । इस गोलाकार क्षेत्र की परिधि उसकी चौड़ाई करते ३- १/३ से कुछ अधिक होता है लवण समुद्र के पूर्व किनारे से पश्चिम किनारे तक का माप पांच लाख होता है अथवा उत्तर से दक्षिण किनारे तक भी पांच लाख होता है । उसकी परिधि के अनुसार १५८११३६ में कुछ कम योजन होता है । 1 पूर्व पूर्व द्वीपवार्द्धिपरिक्षेषा हि येऽन्तिमाः । त एवाग्रयाग्रय पाथोधि द्वीपेष्वभ्यन्तरा मताः ॥६॥ पूर्व पूर्व द्वीप समुद्रों की जो बाह्य परिधि है वह उसके बाद के द्वीप समुद्रों की अभ्यंतर परिधि जानना । (६) अभ्यन्तर बाह्य परिक्षेप योगे ऽद्धिते सति । परिक्षेपा मध्यमाः स्युर्विनाऽऽद्यं द्वीपवार्द्धिषु ॥७॥ अभ्यंतर और बाह्य परिधि का जोड़ करके उसका आधा करने पर वह जम्बू बिना प्रत्येक समुद्रद्वीप की मध्य भाग की परिधि होती है । जैसे कि जम्बू द्वीप की परिधि ३१६२२७ योजन से कुछ अधिक है और लवण समुद्र की परिधि १५८११३६ योजन से कुछ कम है । (७) लक्षा नवाष्टचत्वारिशत्सहस्त्राणि षट्शती । त्र्यशीतिश्च मध्यमो ऽयं परिधिर्लवणोदधौ ॥८॥ इन दोनों का जोड़ करके आधा करने पर लगभग (६४८६८३) नौ लाख अड़तालीस हजार छः सौ तिरासी लवण समुद्र की मध्यम परिधि होती है । (5)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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