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ॐ अर्हम् नमः श्री आत्मवल्लभ, ललित, पूर्णानंद, प्रकाश चन्द्र सूरिभ्योः नमः
श्रीमद् विनय विजयोपाध्याय विरचित
श्री लोक प्रकाश
क्षेत्र लोक (उत्तरार्ध) (तृतीय विभाग)
इक्कीस सर्गः अथास्य जम्बू द्वीपस्य, परिक्षेपकमम्बुधिम् । कीर्तयामिः कीर्तिगुरुप्रसादप्रथितोद्यमः ॥१॥
परमपूज्य उपाध्याय श्री कीर्ति विजय जी गुरुदेव की कृपा से मेरे ज्ञान का उद्यम विस्तृत बना है वह मैं (विनय विजय) अब जम्बूद्वीप के आस पास लिपटे हुए समुद्र का वर्णन करता हूँ । (१) .. .: तस्थुषो भोगिन इवावेष्टयैनं द्वीपशेवधिम् ।
क्षारोदकत्वादस्याब्धेलवणोद इति प्रथा ॥२॥ - जिस तरह सर्प निधान को लिपटा रहता है वैसे इस द्वीप रूप निधान को लिपट कर रहा इस समुद्र का पानी खारा होने से उसका नाम लवण समुद्र कहलाता है ।
. चक्रवाल तया चैष, विस्तीर्णो लक्षयोर्द्वयम् । - योजनानां परिक्षेप परिमाणमथोच्यते ॥३॥
लवण समुद्र गोलाकार से चारों तरफ दो लाख योजन का विस्तार वाला है। अब उसकी परिधि का परिमाण कहते हैं। (३)
एकाशीतिसहस्राढया, लक्षाः पंच्चदशाथ च । शतमेकोनचत्वारिंशताऽऽढयं किच्चिदूनया ॥४॥ एषोऽस्य बाह्यपरिधिर्धातकीखण्डसन्निधौ । जम्बू द्वीपस्य परिधिर्यः स एवान्तरः पुनः ॥५॥