SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 586
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५३३) अनुक्रम से नारद से भामंडल राजा ने यह बात सुनी और तुरन्त वहां पुंडरीकपुर में सीता से आकर मिला । (४८७) ततश्च जानकी तंत्र सुषुवे दोष्मिणौ सुवौ । नामतोऽनङ्गलवणं, मदनाङ्कशमप्यथ ॥४८८॥ - उसके बाद जानकी ने पराक्रमी दो पुत्रों को जन्म दिया । उनका नाम १ - अनंग लवण और २ -मदनांकुश रखा गया । (४८८) पितुः स्वरुपमप्राष्टां, मातरं तौ महाशयौ । जातपूर्वं व्यतिकरमवोचत् साऽषि साश्रुदृक् ॥४८६॥ महान आशयवाले उन दोनों पुत्रों ने माता से पिता का स्वरूप पूछा । तब सीता ने भी आँख में आंसू लाते हुए वृत्तान्त को कहा । (४८६) ततो निरागसो मातुस्त्यागात्पितरि साधौ । युद्धाय धीरौ पितरमभ्यषेणयतां द्रुतम ॥४६०॥ उस समय निर्दोष माता का त्याग करने से पिता ऊपर क्रोध चढ़े धीर दोनों पुत्रों ने युद्ध के लिये पिता को आमंत्रण दिया । (४६०) उत्पन्नः कोऽपि वैरीति विषण्णौ रामलक्ष्मणौ । चतुरङ्ग चमूचकैः सन्नो ते स्म सायुधौ ॥४६१॥ कोई वैरी उत्पन्न हुआ है, इस तरह जानकर विषाद हुए राम लक्ष्मण चतुरंग सेना के साथ आयुध सहित युद्ध करने के लिए तैयार हुए । (४६१) ततस्तौ बलिनौ तीक्ष्णैनिर्जित्य रणकर्मभिः । नारदावेदितो तातं, पितृव्यं च प्रणेमतुः ॥४६२॥ पुत्रो तावप्युपालक्ष्य, तुष्टौ पुष्टौजसावुभौ भुजोपपीडमालिङ्गय भेजाते परमां मुदम् ॥४६३॥ बलवान उन पुत्रों ने तीक्ष्ण-तीव्र युद्ध से राम लक्ष्मण को जीत लिया परन्तु नारद मुनि के कहने से पिता और चाचा को नमस्कार किया तब उन दोनों राम लक्ष्मण ने भी पुष्ठ बलिष्ठ, ये अपने पुत्र हैं, इस तरह जानकर खुश होकर भुजा से आलिंगन कर के अत्यन्त आनंद प्राप्त किया । (४६२-४६३)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy