SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 585
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५३२) .. शुद्धाशुद्धति को वेद, स्थिता रावणमन्दिरे । किमादृताऽपरीक्ष्येति, लोकापवाद भीरूणा ॥४८१॥ .. रामेण सा सुशीलापि सगर्भातत्त्यजे बने । सतांलोका पवादो हि, मरणादपि दुस्सहः ॥४८२॥युग्मं॥ जो सीता रावण के घर में रहकर भी वह शुद्ध है अथवा अशुद्ध है, वह कौन जानता है ? उसकी परीक्षा किए बिना राम ने कैसे स्वीकार कर ली है.? इस तरह से लोकापवाद से भयभीत हुए राम ने सुशीला और गर्भवती सीता को वन में छोड़ दिया था । सत् पुरुषों को लोक परवाह मृत्यु से भी अधिक दुःखद होता है । (४८१-४८२) चिन्तयन्ती सती साऽथ, विपाकं पूर्व कर्मणाम् । भयोद्धान्ता परिश्रान्ता, वभ्रामेतत्ततो बने ॥४८३॥ सती शिरोमणि सीता पूर्वकर्म के विपाक का चिन्तन करती भयभीत और थकी हुई इधर-उधर वन में परिभ्रमण करने लगी । (४८३) पुण्डरीक पुराधीशः, पुण्डरीकोल्ल संद्यशाः । गजवाहनराजस्य, बंधूदेव्याश्च नन्दनः ॥४८४॥ महार्ह तो महासत्त्वः, परनारीसहोदरः । धार्मिको नृपतिर्वजजङ्घस्तत्र समागतः ॥४८५॥ उसके बाद पुंडरीकपुर का अधीश कमल के समान निर्मल यश वाला गज वाहन राजा और बन्धु देवी का पुत्र महान श्रावक, महान सत्वशाली परनारी के लिए सहोदर (भाई) और महाधार्मिक वज्र जघं राजा वहां आया । (४८४-४८५) स्वीकृत्य भगिनीत्वेन, तां निनाय स्वमन्दिरम् । । तत्र भ्रातृर्गुह इव, वसति स्म निराकुला ॥४८६॥ सीता को बहन रूप में स्वीकार करके अपने राजमहल में ले गया और वहां भाई के घर के समान निराकुल रुप में सीता रही थी । (४८६) .. क्रमात्तन्नारदात् श्रुत्वा, भामण्डलमहीपतिः । । पुण्डरीकपुरे सीतां, समुपेयाय सत्वरः ॥४८७॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy