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________________ ( ५१२ ) उत्पद्यते चात्र महाशुक्र नामा सुरेश्वरः I प्राग्वत्कृत्वाऽर्हदाद्यचार्मलंकुर्यान्महासनम् ॥३६१॥ और उस विमान में महाशुक्र नामक इन्द्र उत्पन्न होता है । पूर्व के इन्द्रों के समान श्री अरिहंत परमात्मा की पूजा करके आसन को अलंकृत करता है । ( ३६१) एक देव सहस्रेण सेव्योऽभ्यन्तरपर्षदाम् । पञ्चपल्याधिकापार्द्ध षोडशाम्भोधिजीविनाम् ॥३६२॥ सहस्त्रद्वितयेनैष सेवितो मध्यपर्षदाम् । चतुः पल्याधिक सार्द्ध पञ्चदशार्णवायुषाम् ॥३६३॥ . चतुः सहस्त्रया देवानां, सेवितो बाह्य पर्षदाम् । त्रिपल्योपम युक् सार्द्धपञ्च दशार्णवायुषाम् ॥३६४॥ सामानिकानां चत्वारिंशता सेव्यः सहस्र कैः । चतुर्दिशं च प्रत्येकं तावद्भिरङ रक्षकैः ॥ ३६५॥ त्रायस्त्रिंशै लोक पालैरनीकानीक नायकैः । अन्यैरपि महाशुक्र वासिभिः सेवितः सुरैः ॥ ३६६ ॥ जम्बूद्वीपान् पूरयितु क्षमः षोडश सर्वतः । रूवैर्विकु वितै स्तियिंगसंख्यद्वीपतोयधीन् ॥३६७ ॥ सद्विमानसहस्राणां चत्वारिंशत् ईश्वरः 1 महाशुक्रं शास्ति सप्तदश पाधोनिधि स्थितिः ॥ ३६८ ॥ सप्तभिः , कुलकम् । महा शुकेन्द्र साढे पंद्रह सागरोपम + ५ पल्योतम की स्थिति धारण करते अभ्यन्तर पर्षदा के हजार देव, साढ़े पंद्रह सागरोपम + चार पल्योपम स्थिति धारण करते मध्यम पर्षदा के दो हजार देव, साढ़े पंद्रह सागरोपम + तीन पल्योपम की स्थिति धारण करते बाह्य पर्षदा के चार हजार देव, चालीस हजार सामानिक देव और चारों तरफ चालीस-चालीस हजार आत्मरक्षक देवता त्रायस्त्रिंश लोकपाल, सेना, सेनाधिपति और अन्य भी महाशुक्रवासी देवताओं द्वारा सेवा होती है और यह इन्द्र अपने रचित रूप से सोलह जम्बू द्वीप और तिच्छे असंख्य द्वीप समुद्र को भरने के
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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