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उन इन्द्रक विमानों के नाम क्रमशः १-आयंकर, २-वृद्धि, ३-केतु और ४-गरुल है । उनकी चार-चार पंक्ति निकलती है और पूर्व के समान अन्य पुष्पा वकीर्णक विमान है । (३३०)
पड्विशंति पञ्च चतुरस्त्रधिक विंशतिः क्रमात् । प्रतरेषु चतुर्वेषु प्रतिपति विमानकाः ॥३३१॥
प्रत्येक प्रतर में चार दिशा के क्रमशः छब्बीस, पच्चीस, चौबीस और तेईस विमान प्रत्येक पंक्ति में होते हैं । (३३१)
तत्राद्यप्रतरे पङ्क्तौ पङ्क्तावष्टैव वृत्तकाः । नव च त्रिचतुःकोणाः, सर्वे चतुर्युतं शतम् ॥३३२॥
पहले प्रतर की प्रत्येक पंक्ति में आठ गोल विमान तथा त्रिकोन और चतुष्कोन नौ, नौ विमान होते हैं, कुल मिलाकर एक सौ चार विमान होते हैं । (३३२)
द्वितीय प्रतरे त्र्यस्त्रा नवाष्टाष्टापरे द्विधाः ।
सर्वे शतं तृतीय च, प्रतरेऽष्टाष्ट ते त्रिधा ॥३३३॥ . दूसरे प्रतर में त्रिकोन विमानं नौ हैं, गोल और चतुष्कोन विमान आठ-आठ हैं, कुल मिलाकर एक सौ विमान होते हैं । तीसरे प्रतर में तीनों प्रकार के आठआठ विमान हैं, कुल छियानवे विमान होते हैं । (३३३)
सर्वे च ते षण्णवतिश्चतुर्थप्रतरे पुनः ।.. अष्टौत्रयस्राश्चतुरस्रा, वृत्ताः सप्त विमानकाः ॥३३४॥ सर्वेचात्र द्वि नवतिः पातेयाः परिकीर्तिताः । चतुरिन्द्रकयोगेऽत्र, सवेस्युः पति वृतकाः ॥३३५॥ अष्टाविशं शतं पतित्र्यस्राः षट्तिशकं शतम् । द्वात्रिशं च शतं पशिचतुरस्राः प्रकीर्तिताः ॥३३६॥
चौथे प्रतर में त्रिकोन और चोरस विमान आठ-आठ हैं और गोलाकार विमान सात है कुल मिलाकर विमान बयानवें होते हैं । चार प्रतर के मिलाकर पंक्तिगत गोल विमान इन्द्रक विमान मिलाकर एक सौ अट्ठाईस होते हैं । त्रिकोन विमान एक सौ छब्बीस होते हैं और चोरसं विमान एक सौ बत्तीस कहे हैं । (३३४-३३६)