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(५०५) तथाहुः- "गो०!चत्तारिपञ्चतिरिक्खजोणियमणुस्सदेव भवग्गहणाई संसारं अणुपरियट्टिताततो पच्छा सिज्झिहितिजावअंतं काहिति"भगवती सूत्रे श०६उ० ३॥ ,
श्री भगवती सूत्र के अन्दर नौवे शतक तेतीस उद्देश में कहा है कि - हे गोतम! चार पाँच तिर्यंच, मनुष्य तथा देव जन को स्वीकार रूप संसार में परिभ्रमण कर उसके बाद सिद्धि प्राप्त करेगा । भव-संसार का अंत करेगा ।
ग्रन्थान्तरे च यद्यस्यानन्ता अपिभवाः श्रुताः । तदा तदनुसारेण, तथाज्ञेया विवेकिभिः ॥३२१॥
यद्यपि - ग्रन्थान्तर में जमाली के अनंत संसार भ्रमण भी सुने जाते हैं तब उनके अनुसार विवेकी पुरुष को समझ लेना । (३२१) .जिनंविनाऽन्यःकस्तत्वं,निश्चेतुं,निश्चेतुंक्षमतेऽपरः।
ततः प्रमाणमुभयं, श्री वीराज्ञाऽनुसारिणाम् ॥३२२॥
श्री जिनेश्चर भगवन्त बिना अन्य कौन तत्व का निश्चय कर सकते हैं, इसलिए श्री वीर परमात्मा की आज्ञानुसार जीव के लिए दोनो वस्तु प्रमाण है । (३२२) - सत्यप्येवं पञ्चमाङ्गवचोविलुप्य ये जडाः ।
एकान्तेन भवानस्यानन्तानिश्चिन्वतेऽधुना ॥३२३॥ कदाग्रहतमश्छन्ननयनास्ते मुधा स्वयम् ।
भवैरनन्तैर्युज्यन्ते, परानन्तभवाग्रहात् ॥३२४॥ . इस तरह होने पर भी जो जड़ पुरुष एकान्त में श्री भगवती सूत्र की बातों को उड़ाकर अभी जमाली के अनन्त जन्मों को निश्चय करता है, वह कदाग्रह रूपी अंधकार से ढकी आंख वाला निष्फल विचार अन्य-अन्य को अनंत संसार-संसार का रास्ता पकड़वा कर स्वयं अनंत सागर से जुड़ जाता है । (३२३-३२४) एवं च "अनन्ता संख्य संख्येयानुत्सूत्र भाषिणेऽपिहि ।
परिणाम विशेषेण, भवान् भ्राम्यन्ति संसृतौ ॥३२५॥
और भी कहा है कि - परिणाम विशेष उत्सूत्र भाषी जीव इस संसार में अनंत असंख्यात और संख्यात जन्म में परिभ्रमण करता है । (३२५)