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________________ (५०४) हे जमालि ! यह लोक शाश्वत है अथवा अशाश्वत है ? जीव भी शाश्वत है अथवा अशाश्वत है ? इसका उत्तर जल्दी दो । (३१४) जगद्गुरु प्रत्यनीककतया प्रश्नमपीदृशम् । . सोऽक्षमः प्रत्यवस्थातुं, वभूव मलिनाननः ॥३१५॥ भगवान के प्रत्यनिक होने के कारण ऐसे सामान्य भी प्रश्नों का उत्तर देने में असमर्थ बनने से वह श्याम मुखवाला हो गया । (३१५) . ततः स वीरनाथेन, प्रोक्तः किं मुह्यसीह भोः । ... शाश्वताशाश्वतौ ो तौ, द्रव्यपर्यायभेदतः ॥३१६॥ उस समय श्री महावीर प्रभु ने कहा - हे जमाली ! तू किसलिये मुरझा रहा है ? यह जगत और जीव दोनों पदार्थ द्रव्य और पर्याय के भेद से शाश्वत और अशाश्वत होता है । (३१६) छद्मस्थाः सन्ति मे शिष्या, ईटंकप्रश्रोत्तरे क्षमाः। अनेके न तु ते त्वद्वदसत्सार्वज्यशंसिनः ॥३१७॥ मेरे अनेक छद्मस्थ शिष्य हैं परन्तु इस प्रश्न का उत्तर देने में समर्थ है फिर • भी तेरे समान अपने आप को झूठ रुप में सर्वज्ञ नही कहते हैं । (३१७) अश्रद्धधत्तजिनोक्तं स्वैरं पुनरपि भ्रमन् । व्युद्ग्राह्यं च स्वपरं, कुर्वस्तपांस्यनेकथा ॥३१८॥ अन्तेऽर्द्धमासिकं कृत्वाऽनशनं तच्य पातकम् । अनालोच्या प्रतिक्रम्य,मृत्वा किल्विषिकोऽभवत् ॥३१६॥ ततश्चयुत्वा च विबुधतिर्यग्मनुजजन्मसु । उत्पद्य पञ्चश पञ्चदशे जन्मनि सेत्स्यति ॥३२०॥ इस तरह से युक्ति पूर्वक भी भगवान की कही बात ऊपर श्रद्धा नहीं करते इच्छानुसार भ्रमण करते स्व, पर की ब्युदग्राहित करते अनेक प्रकार का तप करते अन्तिम समय में अर्ध महीने का अनशन करके उस पाप की आलोचना-प्रतिक्रमण किए बिना मरकर किल्विषिक देव हुआ, वहां से च्यवन कर देव तिर्यंच और मनुष्य के जन्मों में पांच-पांच बार जन्म लेकर वह पन्द्रवें जन्म में सिद्धगति प्राप्त करेगा। (३१८-३२०)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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