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इत्यादि युक्तियों से शिष्यों ने समझाया फिर भी जमाली कदाग्रही होने के कारण उसन अपना दुराग्रह नहीं छोड़ा, इससे कई धर्मार्थी शिष्यों ने उसे छोड़ दिया और कई शिष्यों ने उसका आदर-स्वीकार किया । (३०८)
यैस्त्यक्तस्ते महावीरं, चम्पायां पुरी संस्थितम् ।
अभ्युपेत्य गुरुकृत्योद्युक्ताः स्वार्थमसाधयन् ॥३०६॥
जिन्होंने छोड़ दिया वे सभी ने चंपानगरी में विराजमान श्री महावीर स्वामी के पास में आकर मोक्ष मार्ग में उद्यमशील होकर स्वार्थ कल्याण की साधना की । (३०६)
क्रमाद्विमुक्तो रोगेण द्रव्यतोन तु यावतः । जमालिरपि चम्पायामुपवीरमुपागतः ॥३१०॥
अनुक्रम से जमाली का द्रव्यरोग शान्त हो गया, परन्तु भाव रोग शान्त न हुआ उसके बाद जमाली भी चम्पानगरी में श्री वीर परमात्मा के पास में आया । (३१०)
कदाग्रहग्रहग्रस्त प्रशस्तधिषणाबलः । इत्याललाप भगवन् ! भवच्छिष्याः परे यथा ॥३११॥ छद्मस्था न तथैवाहं किंतु जातोऽस्मि केवली । इति. बुवाणं भगवानिन्द्रभूतिस्तमब्रवीत् ॥३१२॥ ज्ञानं केवलिनः शक्यं, नावरीतुं पटादिभिः ।
यदि त्वं केवली तर्हि प्रश्रयोर्मे कुरुत्तरम् ॥३१३॥ - कदाग्रह रूपीग्रह से उसकी निर्मल बुद्धि मलीन हो गई थी अतः जमाली ने परमात्मा को कहा - भगवान ! तुम्हारे अन्य शिष्य छद्मस्थ है वैसा मैं नहीं हूँ परन्तु मैं केवली बना हूँ । इस तरह बोलते जमाली को श्री इन्द्र भूति भगवान ने कहा कि - केवलज्ञानी का ज्ञान तो पर आदि से आवरण रहित होता है यदि तुम्हें केवल ज्ञान हो तो मेरे दो प्रश्न का उत्तर दो । (३११-३१३)
जमाले ! नन्वसौ लोकः शाश्वतोऽशाश्वतोऽथवा । जीवोऽप्यशाश्वतः किं वा, शाश्वतस्तद्वदद्रुतम् ॥३१४॥