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आचार्य, उपाध्याय, गच्छ, और संघ के विरोधी अवर्णवादी उनके अपयश को करने वाले उनके प्रति असद्भाव उत्पन्न करने के कारण मिथ्यात्व के अभिनिवेष से आत्मा को, पर को और उभय को व्युदग्राहित करते जीव बहुत वर्ष चारित्र पालकर भी दु:ख के कारणभूत उस कर्म की आलोचना और प्रतिक्रमण किए बिना मरकर के तीन किल्विषिक के मध्य में इस प्रकार के व्रत और पर्याय के सापेक्ष आयुष्य वाले देव बनते हैं । (२८६-२६२) ...
एभ्यश्चयुत्वा देवनरतिर्यकनारक जन्मसु । .. चतुरः पन्चा वा वारान्, भ्रान्त्वा सिद्धयन्ति केचन ।।२६३॥ के चित्पुनःरर्ह दादि निबिडाशातनाकृतः । कृतानन्तभवाभीम, भ्राम्यन्ति भवसागरम् ॥२६४॥
वहां से च्यवन कर देव मनुष्य तिर्यंच अथवा नरक योनि में चार पांच बार भ्रमणकर कोई मोक्ष में जाता है, जबकि कोई तो श्री अरिहंत भगवान को अत्यंत आशातना करके अनन्त जन्मों तक भयंकर संसार सागर में परिभ्रमण करता रहता है । (२६३-२६४)
तथाहुः “देव किब्विषिया णं यंते ! ताओ देव लोगाओ" - इत्यादि ।
शास्त्र में कहा है कि - हे भगवान ! उस देवलोक से किल्विषिक देव च्यवन कर कहां जाते हैं इत्यादि वह वर्णन पूर्व में आ गया है ।
जामेयोऽपिच जामाता, यथा वीरज़गद्गुरोः ।... जमालिः किल्विषिके घूत्पन्नोलान्तक वासिषुः ।।२६५॥
जगतगुरु श्री महावीर परमात्मा का भानेज तथा दामाद जमाली लांतक देवलोक के किल्विषक में उत्पन्न हुआ है। (२६५) .
स हि क्षत्रियकुण्डस्थः क्षत्रियस्ताण्डवादिषु । मग्रः श्रुत्वा महावीरमागतं वन्दितुं गताः ।।२६६॥
क्षत्रिय कुंड के रहने वाला क्षत्रिय जामाली नाटक आदि देखने में मग्न रहता था, उस समय परमात्मा श्री महावीर प्रभु का आगमन सुनकर वह वंदन के लिए गया । (२६६)