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वैमानिकाः किल्विषिका स्त्रिधा भवन्ति तद्यथा। त्रयोदशाब्धित्रयम्भोधित्रिपल्योपम जीविनः ॥२८३॥ ..
अब किल्बिषिक देवों का वर्णन करने में आता है : - वैमानिक देवों में तीन प्रकार के किल्विषक देव होते हैं वे १३ सागरोपम के आयुष्य वाले तीन सागरोपम वाले और तीन पल्योपम के आयुष्य वाले होते हैं । (२८३) तत्र च - वसन्ति लान्तकस्याधस्त्रयोदशाब्धि जीविनः ।
अधः सनत्कुमारस्य, त्र्यम्भोधि जीविनः पुनः ।।२८४॥ - त्रिपल्यस्थितित यस्ते च, सौधर्मेशानयोरथः । स्थानमेवं किल्विषिकसुराणांत्रिविधं स्मृतम् ॥२८५॥..
उसमें १३ सागरोपम के आयुष्य वाले किल्विषिक देव लांतक देवलोक के नीचे निवास करते हैं । तीन सागरोपम के आयुष्य वाले सनत्कुमार देवलोक के नीचे रहते हैं और तीन पल्योपम के आयुष्य वाले सौधर्मेशान देवलोक के नीचे रहते हैं । इस तरह किल्विषिक देवों के तीन स्थान रहने के हैं । (२८४-२८५)
नन्वत्राधः शब्देन किमभिधीयते? अधस्तनप्रस्तरं तस्मादप्यधोदेशोवा? अन्यश्चद्वात्रिंशल्लक्ष विमान मध्ये साधारण देवी नामिवैतेषां कतिचिद्विमानानि सन्ति । विमानैक देशे वा विमानाद्वहिर्वातिष्ठन्ति ते? इति ।
अत्रोच्यते - अत्राधः शब्द स्तस्थानवाचको ज्ञेयो यतोऽत्राधः शब्दः प्रथम प्रतरार्थो न घटते, तृतीय षष्ठ कल्पसत्वकिल्विषिकामराणां, तत्प्रथमप्रस्तटयोस्त्रिसागरोपम त्रयोदश सागरोपमस्थित्योर सम्भवात्, तथा तद्विमानानां संख्याः शास्त्रे नोपलभ्यते, तथा देवलोक गतद्वात्रिशल्लक्ष विमानसंख्यामध्ये तद्विमानागणनं न संभाव्यते इति तत्वं सर्वविद्वद्यमिति वृद्धाः ।।
प्रश्न: - यहां अधः' शब्द से क्या कहना चाहता है ? नीचे का अन्तिम प्रतर अथवा प्रतर के नीचे के प्रदेश ? और बत्तीस लाख विमान में साधारण देवियों के विमानों के समान इनके अलग विमान हैं । विमान के एक प्रदेश में रहते हैं? अथवा विमानों के बाहर रहते हैं ?