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________________ (४६७) सप्तषट् पञ्चभिं पल्योपमैः समधिका स्थितिः । द्वादशैवाम्बुनिधयस्तिसृणां पर्षदां क्रमात् ॥२७६॥ तीनों पर्षदा के देवों की स्थिति क्रमशः १२ सागरोपम / ७ पल्योपम, १२ सागरोपम + ६ पल्योपम और १२ सागरोपम + ५ पल्योपम का है । (२७६) आत्म रक्षक देवानां पञ्चाशता सहस्रकैः । एकैकस्यां दिशि सेव्यो, दण्डाद्यायुधपाणिभिः ॥२७७॥ प्राग्वदन्यैरपि मन्त्रित्रायस्त्रिंशक वाहनैः । सैन्यैः सैन्याधिपैर्लोकपालैः पालितशासनः ॥२७८॥ जिनार्चनादिकं धर्म, कुर्वाणः परमार्हतः । दिव्य नाटयदत्तचेताश्चतुर्दशाब्धि जीवितः ॥२७६॥ सातिरेकानष्ट जम्बूद्वीपान् पूरयितं क्षमः । रूपैर्विकुर्वितैस्तिर्यगसंख्यद्वीपतोयधीन् ॥२८०॥ सविमान सहस्राणां पञ्चाशतोऽप्यधीश्वरः । साम्राज्यं शास्ति देवानां, लान्तक स्वर्ग वासिनाम् ॥२८१ ॥ पञ्चभिकुलकं ।। . दंड आदि आयुध के हाथ में धारण करने वाले प्रत्येक दिशा में पचास-पचास हजार आत्मरक्षकं देवता इस इन्द्र की सेवा करते हैं । (२७७) पूर्व में कहे अनुसार मन्त्री, त्रायस्त्रिंश, वाहनं, सैन्य, सेनाधिपति लोकपाल आदि के द्वारा अपने शासन का पालन करने में आता है । (२७८) परमार्हत् इन्द्र महाराज श्री जिनेश्वर परमात्मा की पूजा आदि करते दिव्य नाटक को देखते चौदह सागरोपम का आयुष्य धारण करते हैं । (२७६) इन्द्र महाराज, अपने रचित रूपों से आठ जम्बूद्वीप से कुछ अधिक क्षेत्र को भरने में समर्थ है और तिर्यच असंख्य द्वीपं समुद्र को भरने में समर्थ है (२८०) पचास हजार विमान के अधीश्वर लान्तकेन्द्र लान्तक स्वर्गवासी देवों का साम्राज्य करते हैं । (२८१) अस्य यान विमानं च, भवेत्कामगमाभिधम् । देवः कामगमाभिख्यो, नियुक्तस्तद्विकुर्वणे ॥ २८२॥ लान्तक इन्द्रका यान- विमान कामगम नाम का है और उसकी रचना करने वाला अधिकारी देव भी कामग़म नाम का होता है । (२८२)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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